विनय कोश | Vinay Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-अर्वाकू।,
शर्वोक--पीछे, 'इघर, इस ओर। (२), समोप,
निकट, नज्ञदीक। (३) प्रधम वाचक, पदहिले का
योधक, सब प्रथम का योध फरानेवाला | (४)
-, श्रर्याद्न स्लोतारुअऊर्द्धरेता का उलदा, जिसका
पीयपात हुआ द्वी। ,
अर्वाग-अ्र्याक्, पीछे, धंधर
अलक--फेश, बाल, घुघुरारे याल ।
भलक्ष--भदश्य, अपत्यक्त, जो दिखाई न पड़े।
» अलग--मभिक्न, पृथक, न््यारा, दा; धलद्दा ।
'अल्लेक्वाए--आमृषण, गदना, ज़ेबए। (२) थर्य भोर
शब्द फी वह युक्ति जिससे काम्य की शोसा दे।।
घर्णुन-करने फी यद रीति जिससे उसमें प्रभाव
. और, रोचकता झाजाय | इसके तीन ेद हैं,
. ययथा>-शद्धालदार, अर्थालक्वाए और उमया-
लड्ढा (| ,
झलप--भ्ररफ, लघु, थोड़ा।
झलम--परथेप्ट, पर्य्याप्त, पूर्ण, काफ़ी ।
झशसातो--घलसाता,पभ्रालस्प फरता, क्वान्त दो वा।
झलाप--भालाप,सम्मापण,कथेपकथन,वात
(२) सद्लीत के सात सवरों का साधन, वान।
अलायक--झंयेग्य, निक्म्मा, नालायक । .--
अलिं-पम्रमर,, मधुकए, भरा । (२) सदचारी:
सखी, अरल्ली । (३ ) पिच्छू, शश्चिक, ,यीछी ।
(४) ध्रेणी, पंक्ति, फ्तार।
अलिनि--म्रम॑ंती, मधुकरी, भरी । |,
अली--श्रलि, प्रमरी, भोंरी । (२) सहचरी, सखी 1
. (३) बुश्च्रिक, पिच्छू। (४) भेणी, पाँती ।
झअलीक--मिथ्या, थद्धत; झूठ । (२) अप्रतिपष्ठित,
» मर्य्याद्धा रध्िित, बेहया ।
शंलेखोी->अद्याचारी, . उपद्रवी, अन्यायी, अन्घेर
करनेवाला, गड़बड़ मचानेवाला । (२) शुघ्त
' काणडी, छीकर, चालबाज़। . ...,
अलेगनि->अ्लोन, लवण रहित, बिना नमक का,
जिसमे नोन न पड़ा है । ( २) स्वाद रद्ित,
फीका, पेप्रज्ा 1. .. ... ,
अलोल--अचखल, स्थिए, टिका हुआ, जो चश्चल
ाडात . ५ क्या कह हल
ा
६ ४8. )
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४
अवढहर |
अत्प--उूद्म, न्यून, कम, झल्तप, थोड़ा, कुछ, छीटा,
खघु, नन््हा। (२) एक श्रलंकार का नाम. जिसमें
झआधेय की अपेद्या आधार, की शढपता वा
घोटाई चर्णुच की जाती है ।
अवकास-- अत्र काश, स्थान, जगद । (२) श्रवसर,
'खमय, 'मौका । (३) 'अन्तरिक्ष, सृत्यस्थान,
जाली जगह | (४) अन्तर, दूरी, फ़ासिला।
अबवगा[ह--अथाह; अ्रत्यन्त गस््मीर, बहुत गिरा ।
(२) अनद्वानी, फठिन, न होने ये।ग्य.1 (३) सक्षूट
- का स्थान, कठिताई, मुश्किलका मेकाम । (४)
जल में दिल फर स्नान करना। (५) प्रवेश करना,
पैठना, हुलना । *
चगाद्त--भ्रवगाइना, थादलेना, धह्दाना.। (२ )
पैठ फर, हृव कर, प्रवेश करके | (३) जल में
'प्रवेश कर स्नान करना, निमज्ञान करना ।
अवगादी--मम्न द्दोकर, पैठ कर, डूब फर | (२)
थाद् लेकर, थदाकर, मन्थन करके। (३) स्नान
करके, निमज्जन कर, नहाकर ) (9) मर्थ फर,
विचलित कर, हलचल डाल फर। (५) चला
कर, डुला कर, दिला कर 1 (६ ) सोच कर,
सममभ कर, विचार करके | ' >
अवेगुन--अबगुण, देगपष, ऐव | (२) अपराध,
बुराई, खोदाई। . 7.
श्रवचट--अचानक, अचका, श्रीचक्र। (२) अएडस,
फठिनाई, चपकुलिस। . १.
अवद्धिन्न--अंबच्छिक्ष, 'थक् , अलग किया हुआ,
जिसका ( किसी पदार्थ से अवच्छेद किया
गयाद्वा। .: -
अवचटत--अवटना, शीदना, किसी द्वध : पदार्थ के
कड़ादी में डाल फर आग एरए रख चला फए
गाढ़ा करना। (:२) आलोड़न करना, मथना,
सहना। .. -;
थवदि->छुरा कर, पका फर, 'शद कर। (२)
अलेड़न कर, मथ कर । +
अवडेरे--अवडेर, घुसा फर पेच में फँसाना, फन््दे
में डालना1 (२) भाग्यदीन,अभागा; वृद्फ्स्मित।
अबदर--ओऔदर, मनमौजी, मिधर मन में श्राया
हे
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