विनय कोश | Vinay Kosh

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Vinay Kosh by महावीर प्रसाद - Mahaveer Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-अर्वाकू।, शर्वोक--पीछे, 'इघर, इस ओर। (२), समोप, निकट, नज्ञदीक। (३) प्रधम वाचक, पदहिले का योधक, सब प्रथम का योध फरानेवाला | (४) -, श्रर्याद्न स्लोतारुअऊर्द्धरेता का उलदा, जिसका पीयपात हुआ द्वी। , अर्वाग-अ्र्याक्‌, पीछे, धंधर अलक--फेश, बाल, घुघुरारे याल । भलक्ष--भदश्य, अपत्यक्त, जो दिखाई न पड़े। » अलग--मभिक्न, पृथक, न्‍्यारा, दा; धलद्दा । 'अल्लेक्वाए--आमृषण, गदना, ज़ेबए। (२) थर्य भोर शब्द फी वह युक्ति जिससे काम्य की शोसा दे।। घर्णुन-करने फी यद रीति जिससे उसमें प्रभाव . और, रोचकता झाजाय | इसके तीन ेद हैं, . ययथा>-शद्धालदार, अर्थालक्वाए और उमया- लड्ढा (| , झलप--भ्ररफ, लघु, थोड़ा। झलम--परथेप्ट, पर्य्याप्त, पूर्ण, काफ़ी । झशसातो--घलसाता,पभ्रालस्प फरता, क्वान्त दो वा। झलाप--भालाप,सम्मापण,कथेपकथन,वात (२) सद्लीत के सात सवरों का साधन, वान। अलायक--झंयेग्य, निक्म्मा, नालायक । .-- अलिं-पम्रमर,, मधुकए, भरा । (२) सदचारी: सखी, अरल्ली । (३ ) पिच्छू, शश्चिक, ,यीछी । (४) ध्रेणी, पंक्ति, फ्तार। अलिनि--म्रम॑ंती, मधुकरी, भरी । |, अली--श्रलि, प्रमरी, भोंरी । (२) सहचरी, सखी 1 . (३) बुश्च्रिक, पिच्छू। (४) भेणी, पाँती । झअलीक--मिथ्या, थद्धत; झूठ । (२) अप्रतिपष्ठित, » मर्य्याद्धा रध्िित, बेहया । शंलेखोी->अद्याचारी, . उपद्रवी, अन्यायी, अन्घेर करनेवाला, गड़बड़ मचानेवाला । (२) शुघ्त ' काणडी, छीकर, चालबाज़। . ..., अलेगनि->अ्लोन, लवण रहित, बिना नमक का, जिसमे नोन न पड़ा है । ( २) स्वाद रद्ित, फीका, पेप्रज्ा 1. .. ... , अलोल--अचखल, स्थिए, टिका हुआ, जो चश्चल ाडात . ५ क्या कह हल ा ६ ४8. ) |! ४ अवढहर | अत्प--उूद्म, न्यून, कम, झल्तप, थोड़ा, कुछ, छीटा, खघु, नन्‍्हा। (२) एक श्रलंकार का नाम. जिसमें झआधेय की अपेद्या आधार, की शढपता वा घोटाई चर्णुच की जाती है । अवकास-- अत्र काश, स्थान, जगद । (२) श्रवसर, 'खमय, 'मौका । (३) 'अन्तरिक्ष, सृत्यस्थान, जाली जगह | (४) अन्तर, दूरी, फ़ासिला। अबवगा[ह--अथाह; अ्रत्यन्त गस्‍्मीर, बहुत गिरा । (२) अनद्वानी, फठिन, न होने ये।ग्य.1 (३) सक्षूट - का स्थान, कठिताई, मुश्किलका मेकाम । (४) जल में दिल फर स्नान करना। (५) प्रवेश करना, पैठना, हुलना । * चगाद्त--भ्रवगाइना, थादलेना, धह्दाना.। (२ ) पैठ फर, हृव कर, प्रवेश करके | (३) जल में 'प्रवेश कर स्नान करना, निमज्ञान करना । अवगादी--मम्न द्दोकर, पैठ कर, डूब फर | (२) थाद् लेकर, थदाकर, मन्थन करके। (३) स्नान करके, निमज्जन कर, नहाकर ) (9) मर्थ फर, विचलित कर, हलचल डाल फर। (५) चला कर, डुला कर, दिला कर 1 (६ ) सोच कर, सममभ कर, विचार करके | ' > अवेगुन--अबगुण, देगपष, ऐव | (२) अपराध, बुराई, खोदाई। . 7. श्रवचट--अचानक, अचका, श्रीचक्र। (२) अएडस, फठिनाई, चपकुलिस। . १. अवद्धिन्न--अंबच्छिक्ष, 'थक्‌ , अलग किया हुआ, जिसका ( किसी पदार्थ से अवच्छेद किया गयाद्वा। .: - अवचटत--अवटना, शीदना, किसी द्वध : पदार्थ के कड़ादी में डाल फर आग एरए रख चला फए गाढ़ा करना। (:२) आलोड़न करना, मथना, सहना। .. -; थवदि->छुरा कर, पका फर, 'शद कर। (२) अलेड़न कर, मथ कर । + अवडेरे--अवडेर, घुसा फर पेच में फँसाना, फन्‍्दे में डालना1 (२) भाग्यदीन,अभागा; वृद्‌फ्स्मित। अबदर--ओऔदर, मनमौजी, मिधर मन में श्राया हे




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