उत्तर - रामचरित - नाटक | Uttar- Ram Charit - Natak

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Uttar-  Ram Charit - Natak by सत्यनारायण शर्मा - Satyanarayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका श्दृ भवभूति ओर कालिदास ... सेस्क्ृत फे परमोत्क्ृप्ट कविदृन्त में कालिदास और भवभृति ही ऐसे हैं जिनका गुणगान आज तक अनविद्यर्प से चला आता हैं । सय॑ सम्मति से दोना ही आाटरणीय तथा पूज्य हैं। इन दोनों. मदाकवि-कृत रचनाओ की परस्पर तुलना करके यथार्थ तारतम्य । निकालना जरा टेढी सीर है। सर की रूचि एक ही सी नहीं होती, कोई कालिदास को उत्तम मानते है और फोई भत्रभूति को । किन्तु ध्यानपूचफ ठेसा जाय तो अपने अपने ढग के दोनो ही निराले हूँ, दोनों ही प्रथम श्रेणी के कवि हैं, इन दोनों की पैसे उत्कृष्ट प्रतिभा प्रकृतिजात थी, बैसे ही भाषा भी 'अभिप्रायानुसा- की थी, दोनों की कल्पना, तथा पद रचना में औढता और सर- ,सता आदि जो महाकवियों के गुण हें पूर्णरूप से पाये जाते हैं । यदि कालिदास का कल्पना पर. अधिकार है तो भवभूति भी सानव मनोधर्म के मिन्न भिन्न स्वरूप को चित्रित करने में सिद्धस्त हें। एक अआगार रस का निदर्शन विशद प्रकार से कराते हें तो दूसरे वीर तथा करुणारस की भ्रतिमूर्त्ति सामने सडी कर देते 'हैं और सरस श्टगार रस को चित्राकित करने में अपने प्रतियोगी से किसी भाँति कम नहीं हैं । कालिदास के श्यार का उद्भव कहीं कह्दी पर विशुद्ध प्रेम से नहीं किंठु बहुताश में काम- जासना से द्वी प्रणोदित ऊद्दा जाता है किन्तु भवभूति का झुगार सहज तथा पवित्र भावनात्मक है। कालिदास की वर्णन शैली सरल,स्पाभाविक, मृदुल, मनोहरहे और भयभति की रचना प्रणाली कृत्रिम, श्रमशिल्पित, प्रौढ, समयानुकूल तथा लम्बे लम्पे प्रशम्त प्रभावशाली समासों से ग़ुम्फित है। भवभूति के नादय- पात्र सश्षो और रूपावर मात्र हैं और उनके नाटक उस समय के सामाजिक भाव, रीति-नीति, आचार विचार और पाररपरिक




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