अबला | Abala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाहँस्थ्य-नीवन ३७
जालाजी घर पहुँच गए। खाने के लिये बैठे । नियमानुसार
पूछने छगे कि कक्षा ने खाना खा किया या नहीं । उनकी स्त्री ने
उत्तर दिया कि वह खा चुको और सो मी गईं। तुर्दारी बिगादी
हुई है ।
लाज्ञाजी इप हो गए | ग्रास वाड़ा दी था कि उनकी आँखें फोठरी
की तरफ़ पड़ीं। शीला भोमवत्ती जज्ाए पढ़ रही थी। ज्यों ही
लाजाजी की निगाहों ने शीला को देखा, उनको बड़ा हु ख पहुँचा ।
उन्दोने अपनी ख््री से पूछा-- क्या वह स्राना सा चुकी है।”
ख्री--नहीं। मैंने कई बार कद्दा भो 1” शोला को थावाज्ञ देते
हुए उसकी माता ने कद्दा कि वह पिर-चढ़ी है। जब से हमारी
बातें हुई हैं, चह इसी तरह फठोरी में पड़ी रहती है । अभी चिराग
जजाया भा | क्ड़कियों को इन बातो से कया मतलब, सा थराप का
कर्तेध्य है ।
५. गाज़ामी ने शीज्षा को पुकारा भर वह धीरे से चौके में झ्राकर
बैठ गई । आग्रह करने पर उसने बहुत थोढ़ा खाना खाया | उसकी
इच्छा नहीं थी, किंतु पिता)को दु सिर देखना नहीं चाहती थी । इस
लिये दो-तीन आस खा, पानी पो लिया भौर सर के दर्द का वद्दाना
कर, सोने चक्की गई। लालाजी ने अपनी ख्री को समराना चाद्दा,
परतु व्यय । राव में चज़चम़् करने से मोहसलेवालों फो दुख होता ।
पान खाकर बैठक में चले गए श्रौर सोने की सैयारी कर चारपाई पर
लेट गए । दिन भर के द्वारे थके थे, नींद झा गई। झपनी ख्री छे
कठाओों की वे कभी परवाह नहीं करते थे। ऐसा तो दोता ही
रइता था ।
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