अबला | Abala

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Abala by रमाशंकर सक्सेना - Ramashankar Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाहँस्थ्य-नीवन ३७ जालाजी घर पहुँच गए। खाने के लिये बैठे । नियमानुसार पूछने छगे कि कक्षा ने खाना खा किया या नहीं । उनकी स्त्री ने उत्तर दिया कि वह खा चुको और सो मी गईं। तुर्दारी बिगादी हुई है । लाज्ञाजी इप हो गए | ग्रास वाड़ा दी था कि उनकी आँखें फोठरी की तरफ़ पड़ीं। शीला भोमवत्ती जज्ाए पढ़ रही थी। ज्यों ही लाजाजी की निगाहों ने शीला को देखा, उनको बड़ा हु ख पहुँचा । उन्दोने अपनी ख््री से पूछा-- क्या वह स्राना सा चुकी है।” ख्री--नहीं। मैंने कई बार कद्दा भो 1” शोला को थावाज्ञ देते हुए उसकी माता ने कद्दा कि वह पिर-चढ़ी है। जब से हमारी बातें हुई हैं, चह इसी तरह फठोरी में पड़ी रहती है । अभी चिराग जजाया भा | क्ड़कियों को इन बातो से कया मतलब, सा थराप का कर्तेध्य है । ५. गाज़ामी ने शीज्षा को पुकारा भर वह धीरे से चौके में झ्राकर बैठ गई । आग्रह करने पर उसने बहुत थोढ़ा खाना खाया | उसकी इच्छा नहीं थी, किंतु पिता)को दु सिर देखना नहीं चाहती थी । इस लिये दो-तीन आस खा, पानी पो लिया भौर सर के दर्द का वद्दाना कर, सोने चक्की गई। लालाजी ने अपनी ख्री को समराना चाद्दा, परतु व्यय । राव में चज़चम़् करने से मोहसलेवालों फो दुख होता । पान खाकर बैठक में चले गए श्रौर सोने की सैयारी कर चारपाई पर लेट गए । दिन भर के द्वारे थके थे, नींद झा गई। झपनी ख्री छे कठाओों की वे कभी परवाह नहीं करते थे। ऐसा तो दोता ही रइता था । ॒




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