कहानी संग्रह | Kahani Sagrah
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, लघु कथा / Short story

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.32 MB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दे | काठका घोड़ा
घोड़ा बाखकों की सवारीके योग्य बना था और विशेषता अुसमें यद
थी कि झुसके पैरोंमें धंनुषकी भौाँति-दो. टेढ़ी लकड़ियाँ ठगी हुआ
थीं, जिसकें कारण कुर्सी पर बेठनेवाला बालक अपना शरीर दिला
हिलाकर घोड़पर चढ़नेका आनन्द अवायास पा सकता था ।
बेठनेवाला.गिर न पड़े शिललिये पीठपर अेक कठहरा भी लगा
डुआ था | मेक दिन कबाड़ अुख घोड़पर जमी हुआ घूलको
झाड़कर, जुसे घोकर फिर दूसरी जगद दूकानके सामने रख
रहददा था, जिससे रादद चलनेवालोंकी दृष्टि असपर अनायास
पढ़ सके, कि जितनेमें झखके पड़ोसी दूकानवालेने कहा --
“क्यों मियों जुस्मच दोख ! मिस घोड़ेको तो बहुत दिनों से
धरे हुआ हो, कोओी लेता ही नहीं। मुझे न दे डालो ? मैं
जिसे अपने लड़केको दे दूँगा ! ””
जुम्मन रोखने झुख पढ़ोसीसे कहा --“ वाद, खूब कहा |
ग्राहक और मोतका भी कहीं कुछ ठिकाना है ? न ज्ञाने कब आ
जाय। कमानीदार घोड़की कृद्र भला सब लोग थोड़े दी कर
सकते हैं? ”
जब ये दोनों भिख भाँति आपस बाते कर रहे थे, ठीक
सुखी समय मेक भद्र पुरुष, जिनकी अवस्था दे०, दे व्षेसे कम
न होगी, जो अधरसे हाथमें छड़ी लेकर कहीं जा रहे थे, जुम्म-
नकी बात कानमें पढ़ते ही खड़े हो गये और एूछने ठगे--
“कमानीदार घोड़ा कैसा ? देखें, कहाँ है? आओ, यही ? देखें, देखें !
अरें खिसके मायेपर यहाँ दो तछवारें कैसी बनी हैं ? कुछ सम-
झमें नहीं आता ! ”
User Reviews
No Reviews | Add Yours...