सातवें दशक के कथाकार | Saatve Dashak Ke Kathakaar

Saatve Dashak Ke Kathakaar by विभिन्न लेखक - Various Authors

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
और ऐसे पचासों उदरण नयी बहानियों दे मैं दे सस्ता हूँ । कांचढिक अयदां अंग्रेजी धददों का घतना वाहुल्य भाषा में पहुरे कभी दिखायी नहीं दिया यह सब धन्दे के लिए हो रहा है या पुरे के लिए इस दात से बहस नहीं । हो रहा है और बहू मयो कट्दानी को पुरानी से स्पप्टतया विभाजित करता है । & सम्वेदना सबसे ज्यादा अन्तर मुझे पुरानी और नयी कहानियों की सम्वेदना में दिखायी पड़ता है--कमीन्कमी तो यह रगता हैं कि नये कथावारों को सम्वेदना चुक गयी है 1 पुराने सिते उनके निकट महत्व के नट्ीं रहे 1. पुराने आदर्श और पुरानी मनिकता उनकें लिए पोच हो गयी है । वह जवरदस्त विधटन जो आजादी के याद हमारे देश के धार्मिक सांस्क्िक सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हुआ है उसका श्रतिविम्य सातवें दराक के इन कयाशारों की रघताओ में स्पष्ट परिलक्षित होता है । एक अजीवनमा हाइब्रिइ दोगला यल्चर इनमें रुप घरता दिलाई देता है--डुछ अजीय-सा सिनिसिम्म अनास्या अनेतिकता सूरता दिलावा सारी पुरानी माग्यताओं को सोड़ देने का एमेच्योर हठ घेरे में टामकटोणे मारतेवाएँ यादमी के सोचे प्रपास बपनी घुरो से बल्ग होकर हवा में घूमनेवालें प्रह की-सी जद इ्य्ीववा--यह सम मयें बहानीकारों के यहाँ दृप्टिगीचर होता है। जता कि मैंने अपने लेख के शुरू में कठ़ा था पुराने आदर्शों और आस्थाओं को इन्होंने छापने बचपन बौर किशोरावस्था में नट्टी देखा ।. इन्होंने महात्मा गाँधी के संकेत पर द्दे-बड़ें जमे हुए झरुमरो बलों जजों धनपतियों को श्पना सब-कुछ न्यो छावर बरते महीं दंसा |. एक आदर के पीछे सुदीराम बोग भर भगतविंह जैगे नोजवानों को हेंसते-हेंसते फॉँसी के तस्ते पर चढ़ते नहीं देखा इन्होंने देखा--खादी के कपडे पहननेवालें नेताओं को झूठ बोलते रिश्वत ऐते-देते और अपने बच्चों को पर्च्क स्वूद्धो थौर विलायत को युनिवर्सिटियों में भेजते हकदारों का हक मारकर चपने भाई-भनीजों को नौकरियाँ देते । आम जनता वे किसी साधारण व्यक्ति को किसी बड़े धगपति के मुकाबठें खड़ा करने भर चुनावों में जिताने की हिम्मत खोकर धनपतियों के इशारों पर नाचते आम नौजवानों को सुशामद करते और मात्र संमय-राधकता और अयसरवादिता से वाम लेते हुए क्षपने करियर की सोड़ियों चते--और इस दुश्चक में अपनी मेथा अपने प्यार श्षपने आाद्शों को कंव्ति होते--और चूंकि गीता धर उपनिपदों के जीवनोपयोगी सिद्धात्तों से । उनका परिचय नट्दी अयवा है तो थे उनरी सोच का अंग सही बने इसलिए बह । निरोकता उनके यहाँ नहीं है अपने भोगे अयवा दे और चाहे पश्चिम छे २ ड




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now