गंगा शहर की गंगा | Ganga Shahar Ki Ganga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्रीमती नानूदेवी जिन्हे अमर सुहाग मिला
ही की । कभी किसी की भी कटवी नही की । सग्रे-सम्बन्धियो के घरो से जो
भी मिठाई के रूप मे आया, सामने वाले को कभी यह नही कहा कि कम है ।
अगर कम हुआ तो बच्चो मे बांट दिया और अधिक हुआ तो सबने मिलकर
खा लिया ।
आपने 77 वर्ष की आयु पाई। 36 वर्ष से अबह्चर्य, रात्रिभोजन,
समस्त सचित और समस्त हरी सब्जी के त्याग थे। प्रतिवर्ष दो महीने
एकान्तर उपवास करती तथा एक महीने नमक व एक महीने घीका त्याग
रखती । जीवन भर के लिए सिफ 51 द्रव्य रखे हुए थे उनमे प्रतिदिन के लिए
13 से अधिक नही थे | प्रतिदिन 11 से 15 तक सामायिक करना और कम
पानी से शरीर, वस्त्र और घर को साफ-सुथरा रखना आप जानती थी और
अपने परिवार को भी यही शिक्षा देती थी । आपके लिए हुए व्यागो को
मापने दृढता से निभाया और रुग्णावस्था मे भी हरी सब्जी, रात्रि में दवा-
पानी व इजेक्शन नही लिया ।
आपने अपने पति-पुत्र व दोहित्री को दीक्षा की आज्ञा देकर बहुते वडा
लाभ कमाया । आपके छोटे पुत्र पहले ही दीक्षित हो चुके थे । आठ वर्ष बाद
1. मुनि श्री राजकरणजी
तपस्वी सुनि श्री गगारामजी +
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