शान्तिदाता भगवान शांतिनाथ | Shantidata Bhagawan Shanti Nath

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Shantidata Bhagawan Shanti Nath by बसन्त कुमार जैन शास्त्री - Basant Kumar Jain Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाले ताने वाने है। और मात्र पुण्य का फल है । जो विनश्वर भी है क्या तूने यह कभी भी विचार नही किया ? क्या तूने कभी भी इसका अनुभव नही किया ? क्या तूने कभी भी अपने श्रापको फेंसा हुआ नहीं समझा ? क्या तूने कभी भी इन सबको पाकर घुटन सी महसूस नहीं की ? की है। मै जानता हूँ कि तूने की है। और इसीलिये झ्राज वैराग्य की ज्योति तेरे आत्म पटल पर ज्योतिर्मान हुई है ।” राजा मेघरथ । राजा मेघरथ ने जो सुना तो उसे--जैसे अपनी खोई हुई निधि मिल गई। जैसे वह सृपुप्त अ्रवस्था से जागृत हुआ । भेघरथ ने विचार किया--- थ्रोफ | | | सत्यत ससार एक गहन समुद्र के समान है । यह अत्यन्त दु.सह है । विषम है। दुःख रूपी मगरमच्छी से भरा हुआ है । जन्म, मरण, बुढापा ही इसकी विशाल भँवर है। चारो गतियाँ ही इसकी लहरे है । “यह नि.सार है। “अपार है। “समस्त पापो का समूह ही इसका जल है। +>जीवो का परिभ्रमण ही इसका फल है । सेव दु खो का यह भण्डार है। --भव्य जीवो के लिये भयकर है । मुझे; इस ससार समुद्र को पार करना है| धर्म जहाज को अव मै उपयोग मे लाऊँगा 1 भुक चुका । पर भ्रवः कदापि सासारिक निस्सारता कौ ओर नही भूकु गा । मुझे आ्रात्म सुख प्राप्त करना है । और ससार में सुख है ही कहा ? ( २४ ) | ७७७७ 29५५-०४ ०५७ के >> >>949__+&ं३9७ूभ>5+७मं+३99>+३9+9+9०9»भ>०-_न्‍ममरी कम कक.




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