शान्तिदाता भगवान शांतिनाथ | Shantidata Bhagawan Shanti Nath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वाले ताने वाने है। और मात्र पुण्य का फल है । जो विनश्वर भी है
क्या तूने यह कभी भी विचार नही किया ?
क्या तूने कभी भी इसका अनुभव नही किया ?
क्या तूने कभी भी अपने श्रापको फेंसा हुआ नहीं समझा ?
क्या तूने कभी भी इन सबको पाकर घुटन सी महसूस नहीं की ?
की है। मै जानता हूँ कि तूने की है। और इसीलिये झ्राज वैराग्य
की ज्योति तेरे आत्म पटल पर ज्योतिर्मान हुई है ।”
राजा मेघरथ ।
राजा मेघरथ ने जो सुना तो उसे--जैसे अपनी खोई हुई निधि
मिल गई। जैसे वह सृपुप्त अ्रवस्था से जागृत हुआ ।
भेघरथ ने विचार किया---
थ्रोफ | | |
सत्यत ससार एक गहन समुद्र के समान है । यह अत्यन्त दु.सह
है । विषम है। दुःख रूपी मगरमच्छी से भरा हुआ है । जन्म, मरण,
बुढापा ही इसकी विशाल भँवर है। चारो गतियाँ ही इसकी लहरे
है ।
“यह नि.सार है।
“अपार है।
“समस्त पापो का समूह ही इसका जल है।
+>जीवो का परिभ्रमण ही इसका फल है ।
सेव दु खो का यह भण्डार है।
--भव्य जीवो के लिये भयकर है ।
मुझे; इस ससार समुद्र को पार करना है| धर्म जहाज को अव
मै उपयोग मे लाऊँगा 1
भुक चुका । पर भ्रवः कदापि सासारिक निस्सारता कौ ओर
नही भूकु गा ।
मुझे आ्रात्म सुख प्राप्त करना है । और ससार में सुख है ही कहा ?
( २४ )
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