पथ की पुकार | Path Ki Pukar

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Path Ki Pukar by कमलाकुमारी कमलप्रभा - Kamalakumari Kamalaprabha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वह मृगवेगा पटरानी थी सुख दाता नहीं करे काम कोई जिससे हो असाता। दिव्य रूप संग गुण का भी संगम है ये दोनों एक में हों, यह भी क्‍या कम हैं ! क्षमा भाव मन में वह रहती बसाये॥ २४॥ संतति सुख भी भूपति ने था पाया सुत साठ एक सौ का वह तात कहाया। पढ़े -लिखे सब आज्ञाकारी सुत थे विनय, सरलता, सेवा से सब युत थे॥ राज्य काज में नृप का हाथ बटाये। २५॥ पूर्व पुण्य वह भूप साथ था लाया इसी लिये जीवन में सुख की छाया। जो नियम राज्य के प्रेम से सब नर पाले कोई भी महीपति की आज्ञा नहीं टाले॥ शुभ भावना भूपति के प्रति सब जन भाये॥ २६॥ मणीचन्द्र एक सेठ नगर में नामी अचलापति सम वह धन वैभव का स्वामी। व्यापार हेतु वह जिसके हाथ लगाता मिट्॒टी भी छूता तो सोना बन जाता॥ अन्य श्रेष्ठी भी सलाह पूछने आये॥ २७॥ बढ़ी पूंजी व्यापार बहुत फैलाया बस सूत्र सफलता का हो उसने पाया। सभी मुनीमों पर विश्वास जताता हो भूल प्रेम से पास बुला समझाता॥ वेतन के संग वे भाग लाभ का पाये॥ २८ ॥ 44.409)०-००००००७ ४७०५० ३३७५५ ७५ ५७० कक न « प्र पे +>+>»99 >>» «न > न अरन«>»9+999+»»>> 3 तक न 53 कप ० भमआ२33०3 42५०० अमन




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