राजा सम्प्रति भाग - 1 | Raja Samprati Bhag - 1

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Raja Samprati Bhag - 1  by निर्मल सिंह जैन - Nirmal Singh Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीसरा परिच्छेद्‌ १ सुननेवाले उत्त समयके असिद्ध बोद्धाचार्य नन्दना- चाय थे। उपगुप्तके उपदेशसे उनके अहिसाके तचसे प्रभावित होकर महान्‌ अशोकने बौद्धधर्म स्वीकार किया था और उसके बाद रानियाँ भी बौद्धशुरुकी अनन्य भक्त वन गई थीं। उपशुप्तका खान इस समय ननन्‍्दन नामके भिन्लुकके हाथमें था । किसी विशेष विचारके उत्पन्न होनेसे ही पटरानी तिष्यरक्षिता अपने शुरु नन्‍्दनाचायसे एकान्तमें परामश करनेके लिए बौद्धमठमें आई थी। उसके साथ पॉँच सात दासियाँ भी थीं। इस प्रकार शुरुको चन्दन करके उसने अन्तमें उनसे राजमाता बननेका जाशीर्वाद माँगा । उस समय बौद्धाचार्य एकान्तम बेठे हुए थे। उनके शिष्य बाहर बेठे हुए अध्ययन कर रहे थे। अतण्व अवसर साधकर कहा हुआ रानीका वचन सुनते ही नन्दनका हृदय एकदम चोंक पड़ा । किन्तु फिर भी उसने गस्भीरताके साथ रानीसे कहा :---“महारानीजी ! इसमें नयी बाद ही क्‍या है? आज जिस ग्रदार आप हाराजकी शियतसा हैं, उसी ग्रकार एकदिन राजमाता भी अवश्य बन जाएँगी !”' /आप किस आधारपर ऐसा कहते हैं? आपको




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