मलयसुन्दरी रास | Malayasundari Ras
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विद्या सिद्ध पुरुष को सत्कृत, सम्मानित कर किया विदा |
महापुरुष की महिमा पर महि, मन से होती रही फिदा ॥
वीर घवल के पास कार्यवश, नृप ने भेजा मन्त्रीगण ।
राजकुमार पूछता नृप से, कर आाऊँ में देशाटन ॥
ज्ञान बढ़े सम्मान बढ़े निज, कुलाभिमान सुख बढ़े चढ़े ।
देशाटन जो नहीं करे नर, वे विद्यायें व्यर्थ पढ़े ॥
देश-देश के वेश, रीतियों, भाषाश्रों का ज्ञान मिले।
घर प्र बेठे बेठे किसको, राम-क्ृष्ण भगवान मिले ॥
पित्राज्ञा ले प्रतिनिधियों संग, चले वहां से राजकुमार ।
सहयोगी का वेष बनाकर, पहुँचे वीर धवल दरबार ॥।
वीर धवल राजा की भारी, सभा शान से जुडी सकल ।
६ ॥।
द्वारपाल आकर के बोला, शीश भूकाकर दिखा अकल ॥| १०॥
पृथ्वी स्थान पुरी से श्राए, सचिव और उनके साथी ।
नृप के, दर्शन करना चाहते, आज्ञा यों मांगी जाती ॥ ११॥
लिवा लाइये उनको श्रन्दर, द्वारपाल जा ले आया।
रख उपहार सभी ने अपना, शीश भूकाया सुख पाया ॥ १२॥।
प्राभूत कर स्वीकार भूप ने, बिठलाया करके सत्कार।
दरबारों का होता ही है, अलग-शभ्रलग अ्रपना व्यवहार ॥| १३॥
नूप ने पूछा सूरपाल नृप, सकुशल हैं परिवार समेत ।
परम हितेषी मित्र हमारे, किसी तरह का कहीं न द्वात ॥ १४॥
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