मलयसुन्दरी रास | Malayasundari Ras

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Malayasundari Ras by मणिप्रभसागर जी - Maniprabhsagar Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्या सिद्ध पुरुष को सत्कृत, सम्मानित कर किया विदा | महापुरुष की महिमा पर महि, मन से होती रही फिदा ॥ वीर घवल के पास कार्यवश, नृप ने भेजा मन्त्रीगण । राजकुमार पूछता नृप से, कर आाऊँ में देशाटन ॥ ज्ञान बढ़े सम्मान बढ़े निज, कुलाभिमान सुख बढ़े चढ़े । देशाटन जो नहीं करे नर, वे विद्यायें व्यर्थ पढ़े ॥ देश-देश के वेश, रीतियों, भाषाश्रों का ज्ञान मिले। घर प्र बेठे बेठे किसको, राम-क्ृष्ण भगवान मिले ॥ पित्राज्ञा ले प्रतिनिधियों संग, चले वहां से राजकुमार । सहयोगी का वेष बनाकर, पहुँचे वीर धवल दरबार ॥। वीर धवल राजा की भारी, सभा शान से जुडी सकल । ६ ॥। द्वारपाल आकर के बोला, शीश भूकाकर दिखा अकल ॥| १०॥ पृथ्वी स्थान पुरी से श्राए, सचिव और उनके साथी । नृप के, दर्शन करना चाहते, आज्ञा यों मांगी जाती ॥ ११॥ लिवा लाइये उनको श्रन्दर, द्वारपाल जा ले आया। रख उपहार सभी ने अपना, शीश भूकाया सुख पाया ॥ १२॥। प्राभूत कर स्वीकार भूप ने, बिठलाया करके सत्कार। दरबारों का होता ही है, अलग-शभ्रलग अ्रपना व्यवहार ॥| १३॥ नूप ने पूछा सूरपाल नृप, सकुशल हैं परिवार समेत । परम हितेषी मित्र हमारे, किसी तरह का कहीं न द्वात ॥ १४॥ [ 45




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