साँझ उतरी | Sanjh Utari

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Sanjh Utari by ज्ञान भारिल्ल - Gyan Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन को हलतो बेला में जीवन की ढलती बेला में, विदा मागमे के इस क्षण, कोई साथ नही है मेरे, सूनी-सूनी शाम है । सब खामोश हो गई हैं श्रावाजें श्रनगिन अपनो की, जैसे सहसा मौत हो गई इदद्रधनुप से सपनो की, भ्रौर एक भ्रधियारी चादर अम्बर से ऐसे उतरो--- सारे पथ हो गए प्रपरिचित, दिशा दिशा गुमनाम है ! तैईंस




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