मानवीय मंत्रालय | Manaviy Mantralay

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Manaviy Mantralay by अरविन्द तिवारी - Aravind Tivari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आए दिन, फाइब स्टार होटलों में हिन्दी सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं। हिन्दी के विद्वानों के साथ हमें भी एक समारोह में बुला लिया गया। “कुछ लोग हिन्दी की ऐटियां खा रहे हैं'” की शिकायत हम करते रहते हैं, लेकिन उसी हिन्दी ने हमें फाइव स्टार होटल दिखाया । सम्मेलन में पहुंचने से पहले हमने फाइव स्टार होट्ल का भ्रमण उसी प्रकार किया, जैसे किसी राजनेता के परिजन सरकारी यात्रा के समय, विदेशों में करते हैं । होटल के शोरूम, स्वीमिंग पूल आदि देख कर हमने हिन्दी को धन्यवाद दिया और कृतज्ञ हो गए | हमारे साथ जेब से फक्ड़, कवि ककक्‍कड़ मौजूद थे | हैसियत के हिसाब से, हम दोनों एक जैसे लग रहे थे, अत. एक-दूसरे से चिपके हुए चल रहे थे। हमने पूरा होटल घूमने के बाद, आयोजन स्थल अर्थात हॉल में प्रवेश किया | बड़ा एअरकंडीशन हॉल, छोटा सा माइक और बड़े-बड़े विद्वानों के बीच छोटी-सी हिन्दी ऐसे लग रही थी, जैसे कोई प्राचीन संस्कारों वाली लड़की बिकनी पहिने खड़ी हो। अधिकांश हिन्दी विद्वान फाइव स्टार होटलों में रहने के आदी थे। मेरे जैसे दो-चार धर्मशालातुमा लोग अलग से पहचाने जा सकते थे | हिन्दी की उदारता देखिए, हमें भी बोलने दिया गया। जब हम हिन्दी की दरिद्रता पर बोल रहे थे, तो सामने मेकअप से परिपूर्ण साहित्यकार महिला ने कटाक्ष किया - आपके माथे पर पसीना क्यों आ रहा है| मैंने तुरन्त माथे पर हाथ फिराया और जब यह विश्वास हो गया कि पसीना नहीं है, ४ बड़े आत्म विश्वास से महिला को जवाब दिया - मैडम यह हॉल वातानुकूलित । महिला, मेरे भोलेपन पर मुस्कराई जैसे दफ़्तर की अंग्रेजी, दफ़्तर की हिन्दी को देख कर मुस्कराती है | मैंने उठ महिला को हिन्दी समझ कर, हिन्दी की धजियां उडानी शुरू कर दीं । आयोजकों ने मुझे देख कर मन ही मन कहा - मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है ! कवि कँक्ड़ ने, अपने पुराने सूट की घूल झाड़ते हुए कहा - हिन्दी के कार्यक्रम फाइव स्थर होटलों में नहीं करने चाहिए, क्योंकि फाइव स्टार होटल अंग्रेजी के प्रतीक हैं वैसे, हिन्दी वाले भी हिन्दी के प्रतीकों को नहीं समझ पा रहे हैं। कक्कड़ की बातें, विद्वानों के पल्े नहीं पडीं । यह भी कोई बात हुई, आप हमारे यहां आएं, तरह-तरह की मिठाइयां खाएं हम




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