तीन शहर तीन पहर | Teen Shahar Teen Pahar

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Teen Shahar Teen Pahar by पुरुषोत्तमदास गौड़ - Purushottamdas Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन झहर : तीन पहर श्र इन्दिया रह-रहकर उसकी परांखों के सामने नाच रही थी । उसका रूप- साव्रष्य, सुवाप्तित झरीर श्रोर थौन-मदिरा में भीगी मुस्कान, सभी कुछ उप्तकी आंखों के समक्ष नाच रही थी, उसके मस्तिष्क में उत्मत्तता व्याप्त कर रही थी । हे /उफ़, कसी विडस्बना है !” बहू अपने-प्रायसे फुमफुस्ताया, “बयां भारी सबमुच्र मदिरा से भी श्रधिक उत्तेजक है ? बया उसके सामीष्य भौर आसकित-प्रामंत्रणा पर उदासीन रह पाना वास्तव मे प्रायः असम्भव है ? वास्तव में सचाई कुछ ऐसी दी है । नारी-सौस्दर्य और संसर्ग की उपेक्षा कर पाना एक दुप्कर कार्य है बहू जितना ही इन्दिरा को अपने मन से अलग कर अपने संयम-सतुलन को दृढ़तर रखना चाहता था उतना ही वह उसके करीब, झौर करीब भाती चली ज[ रही थी। भात्मदुर्पंतता को नियश्रित करने के लिए उसने आंखें बन्द कर मरीं भर सीने पर बांहे जकड़कर लेट रहा । सत्य ही कहागया है कि जो प्रकृति शोर कठोर सचाइमी को परे रख- कर निगत्व के भहम में भ्रपना प्रनुमव पक्ष परे रखते हैं, मानवीय दुर्बलता और प्रकृति उन्हें कभी क्षमा वही करती । तन की एक बार भुठलाया जा सकता है परन्तु मत को भुठलाना सर्वेया प्रसम्मव होता है । ऐसी ही दशा झसकिति की इस स्थिति में तवयुवक रामानन्द की भी हुई ध्रा्ें दन्द करते ही उस्ते लगा कि इन्दिरा उसकी बाहों मे समायो हुई करुएा/लाप कर रही है। “बयाग्रो, बवाग्रो मुझे !” और गंगा घाट का वह दुश्य भाकार ही उठा 1 इच्दिरा का सुन्दर मांसल शरोर । उस समय रक्षा-कर्त्तव्य की झनु- भूति में तारी-त्यर्भ-प्रमुभूति विलोप थी, परन्तु इस समय रक्षा-श्रनुमूति विलोर थी और नायी-स्पर्श-प्रदुमूति प्रवल $ रामासस्द, प्रवीक्षवर्पीव ब्रह्मचारी नव्युवक रामानन्द । सिर, सै दाव




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