तुलसी और उनका काव्य | Tulsi Aur Unaka Kabya

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Tulsi Aur Unaka Kabya by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वकथित जोव नी १३ काहे को रोष दोष काहि थीं मेरे ही श्रभाग मोसों सकुचत छुइ सब छाहूँ ॥ ह (वितय-पत्रिका) हाहा करि दीनता कही द्वार-द्वार बार-बार परी न छार मु बायो । भ्रसन बसन बिन. बावरों जहें-तहें उठि. धायो ॥ महिमा मान प्रिय प्रान ते तजि खोलि खलनि झ्रागे खिनु-खिनु पेट खलायो । सॉच कही नाच कौन सो जो न मोहिं लोभ लघु निलज नचायो 0 (वितय-पत्रिका ) ये है दुतसीदास के हृदयोदुगार जो उनकी वृद्धावस्था में उनके मुख से निकले थे । श्रपनी दरिद्रता का ऐसा सजीव वर्णन शायद ही किसी कवि ने किया हो । एक-एक शब्द से करुणा ट्पक रही है । ईयर की विचित्र लोला है कि उसने ऐसे एक परम दरिद्र के हाथों हमें रासचरितमावस -जेसा विभव बाँटा । तुलसीदास के धघाब्दों सें उनके बालपन की हमे इतनी ही ऋलक मिलती है। कब तक उनकी यह दा रही यह ज्ञात नहीं है । पर वे उन्हीं दिनों कभी संतों के हाथों सें पड़ गए थे दुखित देखि सन्तन कह्यो सोचे जमि मन माहूँ । (विनय-पत्रिका ) संतों के भ्रनुरोध से या स्वजाति का श्रनाथ बालक जानकर नरसिंहजी नाम के एक सन्त ने तुलसीदास को श्रपने पास रख लिया । उन्होंने चुलसी की पीठ पर हाथ फेरा सर बॉंह पकड़कर अपना लिया सीजों गुरु पोठ झ्रपनाइ गहि बॉह बोलि-- (दिवय-पत्रिका गुरु कह्मों राम भजन नीको मोहि लगत राज डगरो सो । (विनय पत्रिका) इसके लाद उनका विद्यार्थी-जीवन प्रारस्भ होता है । तुलसीदास का पहला नाम तुलसीदास का पहुला नाम रामबोला था । सस्मव है राम-राम बोलकर दे भोख सॉगा करते थे इससे लोगों ने उनका ताम रामदोला या. रास- दोलवा रख लिया होगा । माता-पिता तो सर ही चुके थे नःस क्लौन रखता ? तुलसीदास को किसी व्यक्ति-विज्ेष का नाम नहीं सालूस था कि किसने उनका तास राशबोला रखा था द्ूसीसे वे कहते है कि रास से नाम रख दिया था राम को गुलाम नाम रौमबोता राख्यो राम | (विनय-पत्रिका )




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