प्राकृत प्रवेशिका | Prakrit Praveshika

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Prakrit Praveshika by कोमल चन्द्र जैन - Komal Chandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरलब्यभन परिवर्तन १७ गे, तिसिनी 5 सिसिणी।' + से, य क्यन्‍्ध 5 ्मस्घो कयन्धो। । व, शयल 5सयनो, अनावू 5 अलावू।? म> फ़, भगवती 5 फकयती ( चू> पै० )। ब, कैटम 5 केढवो ।* है, सभा 5 सहा, शोभते >सोहइ नभ्न *ण्ह। म>लोप, यमुना 5 जँंउणा, | चामुण्डा(- चॉउण्डा |* ढ, विपम् 5 विसढो, विसमो ।* व, मन्मथ +वम्महो, अभिमन्यु रूअहिवनन , अहिमस्नू |? से, अमर ८ भसलो, भमरो।* १ विस्ति या भ ॥41१1२३८हे ॥ विप्तिनी शब्द के ब को भ होता हे । ३२ कवथे मं यो ॥८1१1२३९है०॥ कबध शब्द के व को मय होते हैं। ३ बोब ॥41१1२३७ हे २॥ स्तर से परे असयुक्त श्रनादि व को व होता हे । ४. वैटभे भो व 14!1२४०हे था फ्रैटम शब्द के भ को व होता है । ६ यपुना चामुण्डा कामुकातिमुक्तके मोनुनासिकश्च ॥41 (1१०६ हैं. ॥! मूनोक्त शब्दों के म का लोप होता है। लोप होत के बाद मे के स्थान पर अनुनासिक होता है। ६. विपमे मो ढो वा ॥<1?1२४१ हेशा विपम शब्द के मे को विकल्प से ढ होता है । ७. (अ) म मथे व 141१1 ४२।हे ०॥ मं मथ शब्द के मं को व होता है । (व) वाभिमयौ 1411२ ४३ है ॥ अभिम-यु शब्द वे म थो विस्ल्य से व होता है । ६. श्रमरे सो वा ॥ 1१1२४४हरेटला अमर शब्द के म को यिवल्प से स होता है । हि




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