पालि साहित्य का इतिहास | Pali Sahitya Ka Itihas

Pali Sahitya Ka Itihas by कोमल चन्द्र जैन - Komal Chandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ पालि-साहित्य का इतिहास भगवान्‌ बुद्ध के वाद उनके संघ की स्थिति कुछ और वदल गयी । धुत समर्थक महाकाइ्यप संघ के प्रमुख बन गये । २५ वर्षों से बुद्ध की परिचर्या करनेवाले एवं स्वयं बुद्ध द्वारा वहुश्नुत धर्मघर भादि उपनामों से प्रशनंसित आनन्द को प्रथम संगीति में भाग लेनेवाले भिक्षुओं की सुची में नहों रखा गया । उन ( आनन्द ) पर आरोप था कि उन्होंने अहंतु-पद को प्राप्त नहीं किया । पहले संघ का आधिपत्य था मब संघ-प्रमुख का आधिपत्य हो गया 1 इस बदलती परिस्थिति में यह स्वाभाविक ही था कि बुद्ध के उपदेशों की भाषा को संस्क्ृतनिष्ठ बनाया गया होगा । इस वात की सम्भावना उस समय भौर अधिक हो जाती है जब्र संघ का अमुख वैदिक आचार-विचार से प्रभावित हो । अतः प्रथम संगीति के अवसर पर बुद्ध के उपदेशों की भाषा में भी पर्याप्त परिवर्तन किये गये होंगे इसकी संभावना हैं । चूँकि भिक्षुगण बुद्ध के उपदेदा अपनी-अपनी भाषा में सीखते थे अतः उन उपदेक्यों में भाषागत विविघता होना स्वाभाविक था । इस विविधता के स्थान पर एकरूपता लाने के प्रयास में ही वुद्ध-उपदेशों की भाषा ने एक ऐसा विचित्र रूप घारण कर लिया जिसे स्पष्ट रूप से संस्कृत एवं प्राकृत के बीच का रूप कह सकते हैं भर्थात्‌ कहीं संस्कृत की विशेषता ले लो गयी है तो कहीं उन्हें तत्कालीन बोलचाल की भाषा में ही रहने दिया गया है । प्रथम धमंसंगीति में थेरवादियों द्वारा निमित होने से यहू भाषा केवल थेरवादियों की ही भाषा बनकर रह गयी । सारांश यह कि पालि भाषा कभी भी किसी प्रदेशविश्षेष में वोलचाल की भाषा नहीं रही अपितु यह एक ऐसी कृचिम साहित्यिक भाषा है जो अनेक बोलचाल की भाषाओं के मिश्रण को संस्क्ृतभाषातुगामी रूप देने से बनी है किन्तु इस मिश्रण में मागधी भाषा प्रमुख थी । पालि भाषा का विकासक्रम विकासक्रम की दृष्टि से पालि भाषा को चार श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है । १. तिपिटक में आनेवाली गाधाओं की भाषा--जिस प्रकार वैदिक भाषा में अनेकरूपता पायी जाती है उसी प्रकार गाथाओं की भाषा में भी अनेकरूपता पायी जाती है । इसमें वैदिक भाषा के कुछ प्रयोग भी उपलब्ध होते हैं । इस भाषा का रूप सुत्तनिपात की गाथाओं में देखा जा सकता हूँ। २. तिपिटक के गद्य भाग की भाषा --इसमें न तो गाथाओं की भाषा के समान अनेकरूपता है और स ही वैदिक दाब्दों का प्रयोग । यद्यपि इस अवस्था की भाषा में भी प्राचीन दाव्दों का प्रयोग दृष्टिगोचर हो जाता हैं किन्तु वह बहुत कम है ।




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