संस्कृत वाड्मय भाग - 1 | Sanskrit Vadmay Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sanskrit Vadmay Bhag - 1 by कण्ठमणि शास्त्री - Kanthamani Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कण्ठमणि शास्त्री - Kanthamani Shastri

Add Infomation AboutKanthamani Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
1 ब्यावद्धारिक प्रतिष्ठा तो कर सके, विशेष व्यापक साहित्य रचना का समय न पासके, यद्दां सक्त कि- दोतीम महत्वपूर्ण ग्रन्थों का व्याख्यान भी उनके छारा पूर्ण न किया जा सका फ्ा स॒. १षप्७ में अपता उचरदायित्द सुयोग्य आत्मजोंकी संमठाकर वे इंशवरोय आप्हय का परिप्रालन व र, श्रनन्‍्तचरणास्मोजप्रस्ता श्रीमागीरथी की घारा मे सदा- सवेदा लोकपावन करते रहने के ,लिये ही अन्तर्लान द्वोगण्ए ॥ उनकी भव्य दिव्य शुद्धाद्ैत पुश्टिमार्योय वाइमय-सुवा भारतीय संस्कृति के ग्रवाद द्वारा जगत को ज्रेय प्रेय का जीवत प्रदान करने में जायढक और समर्थ हो गई 1 मगवद्धदनानलावतार श्रीवल्लभ के श्रनन्तर उनके ज्येष्ट आत्मज भरी गोवीनायजी ने पुष्टिमार्ग का व्यावद्यारि स्वरूप-संरक्षण किया और कुछ समय बाद ( सं. १६०० के लगमग ) उनके अनुज श्रीविधलेश प्रभुचरण ने इस कर्तन्य को अपना आदर्श बनाया । राजनैठिक विषम उथलपु पल फे समय में सस्थापित पुष्टिक्ल्यतझ राजनैतिक शातिमय अनुकूल घातावरण में भीविड्ठलेश्वर प्रभुचाण के निरीक्षण, संरक्षण, और आधिपत्य को प्राकर पल्‍्नवित कुसुमित हो गया) शुद्धाईँत पुष्टिमा्गें, साहित्य संगोत कला और सवेतः सुमुखी खात्कतिक कल्याणमयी प्रबृचियों से लहलहा उठा | उघ समय इसे जो स्वरूपरक्षा प्रतिषा और वैभव, वर्चेस्त्र प्राप्त हुआ, वह इतिहास जीवन-चरित्र फे श्रादशे में देखा हा सकता है | तात्पयें यद कि- भ्रीविद्धलिश प्रमुचरण की विद्रमानता, श्राधिपत्य ( से. १५७२ - १६४२ ) में शुद्धाद्देत पुश्मार्ग फी निरह्तसाम्यातिशय उन्नति हुई, बहू विश्मणीय नहीं है, इतिहास उसका साझी है। श्रोविद्लेथर प्रभुचरण (श्रीगुठांइजी) ने छ० पुष्टिमार्ग की सवेतोमुखो उन्नति के लिये बडी दुध्तता-कुशलता-से काम लिया था ५ लोकपोपक पावन दिद्धान्त झुग्घ भरुतिषेनुओंसे अमरभासती के रूप में दुदस्र उन्होने जदां लवालव भक्ति दोहनी भरी, वहां उसे महानुभाव सूरदास आदि अश्छावी कविमतक्त और अनेक अनेक पद रचयिताओओं को मधुर वाणी-सिदा से भी समिद्रित किया था और * एप्र वेइसंद्ििता-ब्याख्वान, उपनिषद्य-पतिश्ाापन । गीता-दशशैन आदि । खुबोधिनी, अरुमाध्य, पुरवेसोमासामाध्य आंद ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now