भातखंडे संगीत शास्त्र भाग 3 | Bhatkhande, Sangeet Sastra Bhag 3

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Bhatkhande, Sangeet Sastra Bhag 3  by विष्णुनारायण - Vishnunarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० # भातखंडे संगीत शास्त्र # कर्तैव्य है। अस्तु, सायंगेय रागों में कुछ पूर्वी अद्भः प्रहण करने वाले राग और कुछ श्री अद्भ ग्रहण करने वाले राग हैं, ऐसा हमने कहा था, ठीक है न ? पूर्वी अद्भ बिल्कुल सरल हे, ओर उसे अब में कहूँगा ही । पूर्वी थाट का आश्रय राग पूर्वी हे, यह तुम समभते ही हो । राग-जनकत्व हम थाट को देते हैं, यह भी तुमको विदित है। ऐसा करने से प्रत्येक सायंगेय रागों में पूर्वी का कौनसा अंश है. यह दिखा देने की जवाबदेही नहीं रहती । दक्षिण की ओर भी ऐसी ही व्यवस्था छे। पूर्वी राग की मुख्य पकड़ ( अथवा अज्भ भी कह सकते हैं ) “नि, सा रे ग, म ग? यह गुणी लोग अपने शिष्यों को बहुधा सिखाते रहते हैं। येह टुकड़ा आया कि ओरोता बिना संदेह पूर्वी पहिचान लेते हैं. ऐसा अनुभव किया जा चुका है । “ग रे सा, नि रे सा? इस तरह से पूर्वी राग गायक अनेक बार शुरू करते हैं, परन्तु यह टुकड़ा पूर्वों का अज्ञ नहीं हे । वह अन्य किसी राग का भी इशारा कर सकेगा। उद्ाहरणाथ “ग, रे सा, नि रे सा? इन स्वरों से 'पूरिया” राग का भी संकेत होगा | प्रश्न--हम पूर्वी राग केसे शुरू करें ! उत्तर--वह तुम ऐसा करों तो चल सकता है, देखो “ग, रे सा, नि सा नि नि, सा रे गम ग, रे ग, मग, रे सा, नि रे सा? इत्यादि | खूबी इतनी ही हे कि नि, सा रे ग, और ग, म ग, रे ग, ये टुकड़े जितनी जल्दी अपने श्रोताओं के आगे रख सको, उतनी जल्दी रक्‍्खो, परन्तु यह कृत्य बड़ी कुशलता से होना चाहिये। जो भाग अपन रागों में आपने उत्तम तेयार किये हुए हो, उन्हें गायन के शुरू में ही ओताओं के आगे सत रबखो क्योंकि ऐसा करने से आगे चलकर ओता उसकी अपेक्षा अधिक मूल्यवान भाग तुम से सुनने की आशा करेंगे, ओर वह तुम्हारे स्वर भंडार में निकलने सम्भव न होंगे। रागों को गाते हुए-आविभाव और तिरोभाव करके गायक अपना गाना केसा मनोहर कर सकता दे, यह कुछ कुछ मैंने सूचित किया ही है। जितना अभ्यास करो और उत्तम गायकों से जो-जो बारम्यार सुना जाय वह सब अंगाभिमुख हो जाता है। स्वर ज्ञान हो जाने से विद्यार्थियों को कुछ भी अड़चन नहीं होती । राग का विस्तार कैसा करें ? इस विषय पर मेंने थोड़ा बहुत कहा ही हे, और भी चाहिये तो बीच बीच में बताता जाऊंगा । संपूर्ण ओर सरल रागों का विस्तार करना विशेष कठिन नहीं होता । अब समभो कि तुमको पूर्वी राग ही गाना है तो कैसा करोगे ? यह एक पूर्वाग वादी राग है, यह पहली बात । उसमें वादी स्वर गांधार है ओर वहाँ आरम्म केसे किया जाय, यह प्रश्न भी सहज ही मन में उत्पन्न होगा । उसका सीधा उत्तर है, गांधार ओर रिषभ जहाँ वादी होंगे, वहाँ उसी स्वर से आरम्भ किया हुआ प्रकार बुरा नहीं दिखाई देगा। में ख्याल गाने वालों की तान बाजी के विषय में अभी नहीं बोलता । मैं तुमको आलाप करने की स्थूल कल्पना देता हूँ । ख्याल गाने वालों को भी उपयोगी हो, ऐसी कुछ मनोहर तानें कही जा सकती हैं, परन्तु उन्हें पीछे देखेंगे । ख्याल गाते हुए तान केसी लगानी चाहिए, यह मेंने अपने गुरु से एक बार पूछा था, ऐस्त स्मरण होता है। उन्होंने हँसकर उत्तर दिया कि “जिस प्रकार शांति के समय सिपाहियों से कराई हुईं कवायद प्रत्यक्ष लड़ाई में गोलाओं की धड़घड़ाहट में एक ओर धरी रहती हे, उसी तरह तालीम के समय सीखी हुईं और बंधी बंधाई तानें महफिल में गायकों को विशेष




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