आकार कल्पना | Aakar Kalpana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आशीर्वाद
अपने शिष्य श्री रणवीर सक्सेना की आलेखन पुस्तक आकार-कल्पना का ललित-कला एवं
कौशल के जिज्ञासुओ से परिचय करते हुए मुझे हुं है। सुझे पूर्ण विश्वास है कि देश के कला साहित्य
से यह एक अमल्य योग होगा । उत्तर प्रदेश की उच्चतर माध्यमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं में चित्रकला
एवं आलेखन की शिक्षा व्यवस्था होते हुए भो परम्परागत एवं मौलिक आकारो पर पुस्तको का
अभाव है ।
मुझे प्रसन्नता है कि लेखक ने अपनी उक्त पुस्तक में भारतीय परम्परागत कला का गृढ़ विवेचन
किया है, तथा पश्चिमी पद्धति पर आधुनिकता लाने का प्रयास नहीं किया है। सौन्दर्य सज्जा के हेतु
जीवित पदार्थों के आकार से भी परिवतेन किया जा सकता है किन्तु ललित कलाओं के सस्बन्ध से अजन्ता
एवं मुगल तथा राजपुत काल के कलाकारों ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि सृष्टि की स्वाभाविक
कृतियों को सम्मुख रखते हुए बिना किसी प्रकार का हेर-फेर किये भी आकारो की सुन्दर रचना को जा
सकती है ।
हमारे कलाकार प्रभ्नावशाली आकारो की रचना करने मे सिद्धहस्त थे और उन्होन यह प्रमाणित
कर दिखाया [कि केवल कल्पना के सहारे साधारण रेखाओं और आकारो के आधार पर प्रभावशाली
चित्र की रचना की जा सकती है ।
अपनी संस्कृति के आधार पर 'कला' को तीन “गुणों के अन्तर्गत रखा जा सकता है।
प्राकृतिक सौन्दर्य का ध्यान रखते हुये, भोतिक एवं मानवीय विज्ञान की उन्नति को सम्मुख रखते
हुये प्रकृति के साथ कलाकार का जब रागात्मक सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता हो तो कला सत्व गुणमथी
होगी । भोतिक विज्ञान का गृढ़ अध्ययन करने पर अभिव्यक्ति भावात्मक तो हो सकती है किन्तु स्वाभा-
विकता के प्रतिकूल नहीं ।
वह कला जो सोन्दर्य की अभिव्यक्ति केवल रंजनाथे एवं व्यावसायिक दृष्टि में करतों हो रजोगुण
प्रधान होती है । पोस्टर, व्यग्यात्मक चित्र और सपृर्ण सज्जा के हेतु की गई कला कृतियों का केवल व्याव-
सायिक मूल्य ही होता है । स्वाभाविकता एवं प्राकृतिक सोन्दर्य मे हेर-फेर करने से केवल इसी प्रकार की
कला का जन्म होता है।
तामसी कला वह है जिसका जन्म बालक द्वारा निभित निर्थंक आकारो से होता है। आधुनिक
मनोवैज्ञानिक कला, यथार्थवाद जिसके जन्मदाता यूरोप के पिकासो एवं मंठेसी हैं, भी इसी के
अन्तर्गत है ।
श्री सक्सेना को “आकार कल्पना में प्राकृतिक आकारों को संतुलित एवं सुन्दर अभिव्यंजना है ।
ऐसी अनुपम पुस्तक के लिए सें अपने प्रिय छात्र को बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि अन्य
प्रकाशकों एवं कला-साहित्य प्रेमियों के लिए यह पुस्तक पथ-प्रदर्शक बनकर चित्रकला एवं आलेखन को
पाठ्य क्रम सें स्थान देने वाले शिक्षा केन्द्रों के लिए भी माप-दण्ड का काम देगी ।
असितकुमार हालदार
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