सारस्वत संदर्शन | Sarswat Sandrshan

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Sarswat Sandrshan by देवदत्त शास्त्री - Devdatt Shastri

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पंडित देवदत्त शास्त्री जी का जन्म भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के कौशांबी जनपद स्थित महेवाघाट क्षेत्रान्तर्गत रानीपुर नामक ग्राम में हुआ था।
इनका गोत्र घृतकौशिक गोत्र था, एवं इनके वंश का नाम कुशहरा था।
यह विद्वान कुल के वंशज सिद्ध हुए क्योंकि इनका कुल पूर्व रुप से ही अत्यंत संस्कृतज्ञ एवं वेदपाठी ब्राह्मण थे, जिनमें पं भवानीदत्त मिश्र, पं देवीदत्त मिश्र, पं शिवदत्त (सिद्ध बाबा) , इनके (देवदत्त शास्त्री)पिता पं ईशदत्त मिश्र और भाई डा. हरिहर प्रसाद मिश्र उल्लेखनीय हैं।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्मभूषण, पण्डितराज' श्री राजेश्वर शास्त्री द्राविड़ कि राजमान्य-पण्डितकुलमण्डन-भूतपुर्व प्रयागविश्वविद्यालयीयसंस्कृतविभाग/ध्यक्ष- महाप्राज्ञ-सरस्वतोप्रसादचतुर्वे दिमहोदयानां._ “सारस्वत सन्दर्शन -- सम्माननामिनन्दनम्‌ राकासुधाकरविसृत्वरचन्द्रिकाभशोभातिशायियशसा.. विशदीक्ृताश.। अन्वर्थतोषपि चरिताथितनामधेय श्रेयान्‌ श्रतेते स भवानभिनन्दनीय ॥१॥ स्वर्गी सदाशिवसमाधवसत्पराण्डे न्‍्यायाधिराडवसरेष यथाध्यवोचत्‌। आयंस्य विश्वुतकुलस्थ सरस्वतीप्रसादस्य हन्त ! तमुदन्तमिह स्मराम ॥२॥ तच्चादूभुत मवदुदात्तकुले प्रवृत्त कश्चित्‌ पितु प्रतिनिधि: प्रतिपुज्य देवीम्‌। भोक्‍तु निवेद्यमथ मोक्तुमपि प्रसाद बालो हठेन विवशीकृतवान्‌ महात्मा ॥३॥ श्रीमान्‌ प्रयागगतविश्वुतविश्वविद्यास्थानेईइमवत्‌ निजविभागपदप्रधान । सर्वाज्भसुन्दरमुपास्य सुरेन्द्रभाषा सम्यह्मन सुमतसा सुरभीचकार॥४॥ धीरो विपत्तिषु समृद्धिष्‌ चात्युदार शास्त्रेषु च व्यसनवान्‌ रुचिमान्यश सु । इत्थ महात्मसु सदा प्रथिता प्रशस्ता स्वादर्शसद्गुणगणा स्पृहयन्ति यस्में ॥५॥ सारस्वत सुमहताञ्य समादरेण सन्दर्शन समुदिता महनीयमान्या । सम्भावयन्ति यदमी तदतीव हृष्ठा मान्यस्य माननविधे प्रणयन्ति नीतिम्‌ ॥६॥ १८, ३. ७३.




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