सांख्य दर्शनम | Sankhya Darshnam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषानुवाद्सहित । २७ णु दव सके कि जित्तसे कीलके श्रवेश करनेकी जाकाश मिले वाशुसते स्पर्श- के अनुमान होनेका देतु यह है कि आकाशमें स्पर्श शून्य होनेसे स्पर्श का बेध नहीं होता सबसे सूक्ष्म जिसमें प्रथम स्पशका बोध होताहे वह वायु है स्पशेका आदिकार्य वायु है इससे वाशस्पशके अनुमानका हेतु हे और नो जिससे स्थूल है उसमें उससे जो सूक्ष्मुभूत हैं उसका गुण मिछारहता है यथा वायु आकाशसे स्थल दे इसमें आकाश जो इससे सूक्ष्म ६ उसका गुण शब्द मा रहता ह अयथात्‌ वायुम स्पश पिशेष ग्रुण हैं परन्तु आकाइसे भिन्न वायुक न हीनेते शब्दभी वायुमें होता है तेजस रझूपका अनुमान इससे होता है कि विनातेज झूपका बोधनहीं होता अ- याद शब्द स्पश रस गंध आकाश आदिके गरुणोंसे झूपका बोध नही होता तेजहीसे रूपका भ्रत्पक्ष होता हें जलसे रस अर्थात्‌ स्वाहुके अनुमान होनेका हेतु यह है कि अकाश वायु तेजमें स्वाद नहीं हे यह परत्यक्षप्त पिद्ध है जलमें मीठा खारा स्वादु होनेका बोध होता है आर मीठे खट्टे आदि मे फल है वह जबतक आद्े अर्थात्‌ जोदे रहते हे तब तक स्थादु अच्छा रहता हे जब सूखजाते हैं तब वेसा स्वादु नहीं रह- ता जो यह कहा जावे कि) पृथिवीमें स्वादु गुण है ओर बहुत्त फछों में सूसनेमेंभी स्वादु रहता है तो सूखे व बेसूसेंम सब फल व अन्य स्वादिष्ट पदार्थोमें तुल्य स्वाहु होना चाहिये क्‍यों कि सूखे व न सूखे- में जढ़की न्‍्यूनता व अधिकता होती है प्ृथिवीकी नहीं दोती इससे जल की विशेषता है परन्ठु एथिवीमेंमी स्वाद ग्रण है क्योंकि यह अथमही फहा गया है कि, जो आधकस्थूछ दँ वह अपन जो छह्म भूत है उसके णुण संयुक्त होता है इसीसे वायुम शब्द स्पश कहा गया ६ वजम शब्द स्पशश रूप तीन हैं जठमें शब्द स्पशे रूप रस घार हैं व धृथिवीमे शब्द स्पर्शरूप रस गंध पांच हैं मंघ परथिवीका विशेष गुण है वायु, तेज (में गंध स्वाभाविक होना सिद्ध नहीं होता वाथु तेज जलमें जो इरपिका बोध होता दे वह एप्प वा अन्य गंधवान पदाथेके सयागसे होता [(दै इससे पृधिवी स्थूछ कार्यस्रे सूक्ष्म कारण रूप संधका असुमान होता




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