प्रति बोध | Prati Bodha

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Prati Bodha by पद्मसागर सूरीश्वर - Padamsagar Surishwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की कितना तोते को पढाया परणँ वो1 हैः वा ही रहा ! पं तोता भले ही मुखसे “राम राम” बोलता रहे, किन्तु वह नहीं जानता ” कि राम कौन थे ओर उनमे कौण-कौण से गुण थे - इसलिए वह उन गुणों का पालन भी नहीं कर सकता । गुणों को जीवन में उतारे बिना कोई आदमी नहीं हो सकता :- “मानता हूँ-- हों फरिश्ते शेखजी आदमी होना मगर दुश्चार है !” कोई व्यक्ति फरिश्ता (देव) हो सकता है, परन्तु आदमी (मानव) होना बहुत कठिन है । इस शेर में मनुष्यता को ही दुर्लभ बताया गया हे । मानवता हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिये । एक विद्यालय मे निरीक्षक महोदय पहुँचे । विद्यालय की सर्वोच्च कक्षा में जाकर छात्रों के सामने एक प्रश्न रकखा :- “तुम विद्यालय में पढने क्यो आते हो ?” इस प्रश्न का सब छात्रो से लिखित उत्तर माँगा गया । प्रत्येक छात्र ने उत्तर लिखकर अपना कागज निरीक्षक महोदय को दे दिया । प्राप्त उत्तरो मे से कुछ ये थे :- “इस प्रश्न पर विचार करने के लिए. अधिक समय चाहिये ।” “इस प्रश्न का उत्तर हमारी पाठ्यपुस्तक में कही नहीं मिलत,” “यदि आप इसका उत्तर जानते है तो हमसे क्यो पूछते हे ?” “मे आपके समान निरीक्षक बनना चाहता हूँ ।” न हे “में डावटर बनना चाहता हूँ ।” “में इजीनियर बनना चाहता हूँ ।” “मे बेरिस्टर बनना चाहता हूँ ।” - “मे मिनिस्टर बनना चाहता हूँ ।” “में मास्टर बनना चाहता हूँ ।” २ मानवता । ३ विद्या ५ पशुता वाला प्राणी २ वस्तु 1 ४ वह जप




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