दो सौ रुपये का चमत्कार | Do Sou Rupay Ka Chamatkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ै 1 मन ही मन कुछ निमथ्रय करता हुप्रा श्राच्यर्य प्रवर के ' समीप जा खड़ा हुझ्ना । तब तक वे श्रोता भी. जो कुछ नियम प्रहण कार रहे थे, जा घुके थे | श्रत्यम्त विनम्नता पूर्वक वन्दन कर गुणचद्द्र ने प्राघाये प्रवर मे निवेदन | किया--“भगवन्‌ ! श्रापक्रे श्राज् के प्रवचन ने मेरे मानस को प्रत्यन्त प्रभावित किया है । दान की इतनी मनोवैज्ञानिक विश्लेषणा मैंने प्रथम बार ही सुनी है । प्राज मेरा हृदय उत्प्रेरणा से भर गया है । मेरे मन में संबल्प जागृत हुप्रा है कि मुझे भी प्राप्त प्रवसर वा कुछ लाम उठा लेना चाहिये । श्रत: भगवन्‌ ! घाज मुझे प्रतिज्ञा करवा दोजिये कि जब तक मेरे पास सम्पत्ति रहेगी, श्रपवा सम्पत्ति पर मेरा भ्रधिकार रहेगा, में २००/-रपये प्रतिदिन दान करूंगा 17 प्राचाय प्रवर ने युवक गुणचन्द्र की भावनाशीलता फो समभते हुए उसका परिचय प्राप्त करने की जिन्नासा फी। गुणचन्द्र ने बड़े शालीन शब्दों में परिचय देते हुए फहा--“भगवन्‌, में यहां के नगर श्रप्ठि श्री घमचन्द्र फा पुत्र हूं । मेरे पिताश्नी घखूट सम्पत्ति के स्वामी हैं प्रौर नगर फे प्रतिष्टित व्यत्तियों में गिने जाते है । प्रपने पिता की इकलौती सन्तान होने के नाते उनशी समस्त घल-प्रचल सम्पत्ति का उत्तराधिकारी में हो हूं । भतः




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