शान्ति सम्बोध | Shanti Sambhodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' धम्मों सम्यस्मूलो [5
!मूति की बड़ी श्रद्धा थी उनके मन में। चौपाल में सब व्यक्ति
'ग्राकर इकट्ठे होते, वहीं भजन-कीत्तेन और सत्संग का कार्यक्रम
' चलता था । एक दिन की बात है, एक साधु घूमते हुए वहाँ झा
। पहुँचे । उस समय दोपहर का समय था । तेज धूप पड़ रही थी ।
' संत ने ग्रामीणों से कहा - “अरे भले श्रादमियों, खुद तो धूप में
स्ले हट कर बैठे हो और मूर्ति पर धूप झा रही है। अपने आप तो
छाया पसंद करते हो । मूर्ति को भी छाया में रखो ।” लोग उठे
मूर्ति पर छाया कर दी । भजन फिर से चालू हो गया। संत तो
गञागे चले गए। दो-तीन घंटे बीते होंगे कि एक श्लौर संत उधर
को आ निकले। मूर्ति पर छाया थी लेकिन सूर्य के दिशा परिवर्तन
के कारण चौपाल की सारी जगह में धूप फैली थी। वे संत कहने
लगे - “भगवान को छाया में रखा है। अरे, भगवान को छाया
की क्या आवश्यकता है ? वे तो सभी को छाया देते हैं। वे तो
अण-अ्रणु में व्याप्त हैं। छाया हटाओश्रो भगवान के ऊपर से ।”
गाँववालों ने छाया हटा दी ।
कुछ देर बाद एक तीसरे महात्मा आए । उन्होंने भी मूर्ति
पर कुछ टीका-टिप्पणी करनी चाही । गाँववालों ने उनकी बात
ही सुनने से इन्कार कर दिया ।
बन्धुगरों, इस तरह श्रद्धा विचलित हो जाती है। सम्यग्दर्शन
हो जाने के वाद किसी प्रकार की कुश्रद्धा और मिथ्यात्व नहीं होने
पाता। सम्यग्दशन से सम्यग्ज्ञान पुष्ट होता है। सांसारिक कार्य
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