युवकों के प्रति | Yuvkon Ke Prati

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Yuvkon Ke Prati by स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रस 3्ट ) । 3 हब #%# फटी भारत अब ही जीवित है २१ उपस्थित सज्जनो ! आपके महाराज ने पहले ही कहा है कि हमे बडे बड़े कार्य करने होगे, अद्भुत शक्ति का विकास दिखाना होगा, दूसरे राष्ट्रो को अनेक बातें सिखानी होंगी । यह देश दर्शन, धर्म, आचार-शास्त्र, मधुरता, कोमलता और प्रेम की मातृभूमि है। ये सब चीजे अब भी भारत में विद्यमान है। मुझे दुनिया के सम्बन्ध मे जो जानकारी है, उसके बल पर में दृढतापूर्वक कह सकता हूँ कि इन बातों में पृथ्वी के अन्य प्रदेशों की अपेक्षा भारत अब भी श्रष्ठ है। इस साधारण घटना को ही लीजिए : गत चार-पाँच वर्षो मे संसार में अनेक बड़े बड़े राजनीतिक परिवतेन हुए हैं। पाश्चात्य देशो में सभी जगह बड़े बडे संगठनों ने विभिन्न देशों मे प्रचलित रीति-रिवाजों को एकदम दबा देने की चेष्टा की और वे बहुत कुछ सफल भी हुए है । हमारे देशवासियों से पुछिए, क्या उन लोगों ने इन बातों के सम्बन्ध में कुछ सुना है ? उन्होने एक शब्द भी नहीं सुता। किन्तु शिकागो में एक धर्म-महासभा हुई थी, भारतवर्ष से उस महासभा में एक संन्‍्यासी भेजा गया था, उसका आदर के साथ स्वागत हुआ, उसी समय से वह पाश्चात्य देशों में कार्य कर रहा है--यह बात यहाँ का एक अत्यन्त निर्धेत भिखारी भी जानता है । लोग कहते हैं कि हमारे देश का जनसमुदाय बडी स्थूलबुद्धि का है, वह किसी प्रकार की शिक्षा नहीं चाहता और संसार का किसी प्रकार का समाचार नहीं जानता चाहता। पहले मूर्खतावश मेरा भी झुकाव ऐसी ही धारणा की ओर था। अब मेरी धारणा है कि काल्पनिक गवेषणाओं एवं द्वुतगति से सारे भूमण्डल की परिक्रमा कर डालनेवालों तथा जल्दबाजी मे पर्यवेक्षण करनेवालो की लेखनी द्वारा लिखित पुस्तकों के पाठ की




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now