शक्ति शंखनाद | Shakti Shankhnaad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
पतितपुञ्ञ भ्रत ख्य समा गये बस छट्टा एनपावन द्वादु में ।
रस नहीं तकते निन् नाम भी नद समावर डिस्तृत सिख्यु में ॥
उचित श्रासन वेदवस्ष्ठि को ध्वन्शाततन बाहुबलिप्ठ को ।
घन मद्दाजन उयमनिष्ठ को गुण दिये जिएने अ्मनिष्ठ को ॥|
भारतीय सप्नाटू छुरध के शासन बाल में भारतवर्ष का प्लो भव्यरूप
कवि ने प्रदर्शित किया ह उ8में राष्ट्र के प्राचोन वैभपशाली नौवन की
वास्तविक ऋक है।
२ द्वितीय में भारत पर श्राक्रमण करने वाले कोलाविध्व॑ध्ियों को
'पलेच्छा। पवेतवापिन ” इस देवी भगव॒त की उक्ति वे अनुसार स्लेच्डु
' इतलाया गया है | उस समय ग्हेच्छों से मिलकर देशद्रोह बरने वाले छामन्व
मन्त्रियों को उपमा उन बासीं से. दी गई है जो अपने ही वश का माश
फरने के लिए दावारिन उत्पन करते ईं--
स्वदेश ही करण ६ दवार्ति में विनाशकारो निबर धेशुबंश के ॥
विदेशी शासन को चलाने वाले राजरुम चारियों दो कवि ने कुत्तों से भी
निकृष्ट बतलााया है->-
क्षण उसी का करने अ्रनिष्ट वे रददे सदा से जिस देश में पले।
अनाय॑ ऐसे अरिदास रूत्य से शुजन्तु भी हुक््कुर ई कहीं भले ॥
पराजित हामे पर भी राजा सुरथ अपने स्वामिमान फो नहीं स्यागता है
और यह सृगया का बहाना परवे सुमेघा रइष के ग्राभम में चला भाता है|
वहा स्वामिमान व विषय में यह सूक्ति थरत््यात सुन्दर है ।-+
विपत्ति मे बन्धु निज्ाभिमान द मनुष्य का रक्षक एक श्रव में ॥
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