सम्राट अशोक | Samrat Ashok

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samrat Ashok by वाल्मीकि त्रिपाठी - Valmiki Tripathi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वाल्मीकि त्रिपाठी - Valmiki Tripathi

Add Infomation AboutValmiki Tripathi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सम्राट मशोक | २५ महाराज जी के समक्ष उपस्थित होता पड़ेगा, यह अकल्पनीय था । अज्ञावभव से आक्रांत हो वह बोलीं, “इस समय दोनों ज्रोघोन्मत्त हैं । एक-दूसरे के सामने ने पड़ें तो हितकर होगा । भहाराज जी का स्वर यत्किचित कठोर हो उठा था, “तुम निश्चित रहो मेरी उपस्थिति में ऐसा कुछ भी में होने पायेगा जो राजकुमारों के लिए अनिष्टकारी हो ।” इसी क्षण सुसीम ने प्रवेश किया । नेत्र रक्तवर्ण थे । कोघजनित लालिमा मुखमण्डल पर ग्ाभासित हो रही थी | कृपाण कटि से आवद्ध थी ॥ युवराज मे मतमस्तक हो अभिवादन किया । सम्राट ने आशीर्वाद के लिए हाथ उठाया ही था कि अशोक ने प्रवेश किया। शिष्टाचार का पालन करते हुए अशोक को भलीभाँति सम्राद ने लक्ष्य किया । अशोक का मुखमण्डल शान्त था। क्रोध का कहीं कोई आभास तक न था। वह एक भोर अविचल खड़ा हो ग्रयो। सम्राट ने पुनः दीनों को ध्यान से देखा और शासक्रीय स्वर में पूछा, “आज तुम दोनों पूनः लड़े ?” किसी भी राजकुमार ने उत्तर न दिया । दोनों नतमस्तक पड़े रहे 1 सम्राट ने पुकारा, अशोक |? “जो, महाराज जी ।! “सुसीम तुम्हारा बड़ा भाई है ?” “जी, महाराज जी 1 “तुम्हें बड़े भाई का सम्मान करना चाहिए ।” _ /जी, महाराज जी 7? “ओर लड़ना भी चाहिए ?” जी नही महाराज जी ९? « “फिर क्यों लड़े ?”' सहसा सम्राट का स्वर कठो रतर ही उठा था। “भट्या मुझ्ते अपना छोटा भाई नहीं समझते ।” अश्लोक के स्वर में दृढ़ृता थी । “फिर वया समझते हैं ?'” #माइन-पुत्र ।” अशोक का उत्तर अति संक्षिप्त था । सन्नाट की क्रोधपूर्णे दृष्टि सुसोम की और घूमी, बयों सुसीम ? अशोक डीक कह रहा है १” सुसीम ने रक-रक कर स्वीकार किया, “जी “जौ मैंने तो ऐसे हो प्न्पेल में कह दिया था ।!/ सम्राट गरज उठे, “बयों कहा तूने ? अभी उस दिन रोहा या मैंते ?”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now