नया पथ | Naya Path

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थी जुबली 5. ' 7. 1४६ पुस्तदा; , बुक स्टेशाक है) कपबीती दोस्तान-दो, फैज अहमद फैज हमारे शायरो का हमेशा यह शिकायत रही है कि जमाने ने उनकी कृद्र नहीं की। हमे इससे उलट शिकायत यह ह कि हम पै लुत्फो-इनायात की इस कृदर बारिश रही हे, अपने दोस्ता की तरफ से, अपने मिलनेवालो की तरफ से ओर उनकी जानिय से भी जिनको हम जानते भी नहीं-कि अक्सर दिल में हिचक महसूस होती है कि इतनी तारीफ ओर वाहवाही पाने का हकदार होने के लिए जो थोडा बहुत काम हमने किया है, उससे बहुत जियादा हमे करना चाहिए था। यह कोई आज की बात नहीं है। वचपन ही से इस किस्म का असर ओरा पर रहा है। जब हम बहुत छाटे थे, स्कूल म॑ पढते थे, तो स्कूल के लडका क साथ भी कुछ इसी किस्म के तअल्लुकात कायम हा गये थे। ख़ाहमख़ाह उन्होंने हमे अपना लीडर मान लिया था, हालांकि लीडरी के गुम हमें नही थे। या तो आदमी बहुत लट्रठवाज हो कि दूसरे उनका रोव माने, या वह सबसे बडा विद्वान हो। हम पढ़ने+लिखने म ठीक थे, खेल भी लेते थे, लेकिन पढ़ाई म हमने कोई ऐसा कमाल पेदा नहीं किया था कि लोग हमारी तरफ्‌ जरूर ध्यान दे। चचपन का म सोचता हू तो एक यह वात ख़ास तोर से याद आती हे कि हमारे घर म॑ औरतो का एक हुजूम था। हम जो तीन भाई थे उनमें हमारे छाटे भाई (इनायत) आर बडे भाई (तुफेल) घर की ओरतो से वागी होकर खलकूद मे जुट रहते थे । हम अकेले उन ख़वातीन के हाथ आ गये । इसका कुछ नुकसान भी हुआ ओर कुछ फायदा भी | फायदा तो यह हुआ कि उन महिलाओ ने हमको इंतिहाई शरीफाना जिदगी बसर करने पर मजबूर किया, जिसकी वजह से कोई असभ्य या उजडूड किस्म की बात उस जमाने मे हमारे मुह से नही निकलती थी। अब भी नहीं निकलती। नुकसान यह हुआ, जिसका मुझे अक्सर अफुसोस हांता ह, कि वचपन के खिलदडेपन या एक तरह की मोजी जिदगी गुजारने से हम कटे रहे। मसलन यह कि गली म कोई पतग उडा रहा है, कोई गोलिया खेल रहा ह, कोई लटूटू चला रहा है, हम सब खेलकूद देखते रहे थ, अकेले बैठकर । 'होता है शबो रोज तमाशा मेरे आगे वाला मामला। हम उन तमाशा के सिर्फ तमाशाई बने रहते, और उनम॑ शरीफ होने की हिम्मत इसलिए नही होती थी कि उसे शरीफाना शगूल या शरीफाना काम नही समझते थे। उस्ताद भी हम पर मेहरवान रहे । आजकल की म नहीं जानता, हमारे जमाने मे तो स्कूल म॑ सख्त फेज के काग्य सग्रह शामे शहरे यारा का आरंभिक गद्य भाग। -सपादक नया पथ अक्टूबर विसवर॒ 2070 ४ 17




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