साठोत्तरी हिन्दी उपन्यासों में राजनीतिक चेतना | Sathotari Hindi Upanyaso Main Rajnitik Chaitna

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Sathotari Hindi Upanyaso Main Rajnitik Chaitna by कृष्णकुमार बिस्सा - Krishnakumar Bissa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1, है परिवेशगत जायहूकता का जीवत परिचय देता है । 'शाति भग (१६८२) * मुद्राराक्षम वा 'शाति भग! 'उपयास आपातकाल के तौन साल के कर इतिहास पर आधारित हूँ । यह इृति सच्चे अर्थों में तत्तालीन मनुष्य वी सम्पूण मानप्तिकता वो उद्घादित वरन या प्रयत्त हैं । 'इस उपयास मे क्या नही है । कया के नाम पर आपातकाल के रप में आदमी पर पडने वाली मार का विव रण है और हर आदमी वी पीडा को अलग्र-अलग चित्रों में उभारा गया हैं । इस उपयास में विभिन पाषा वे साध्यम से आपतृयाल को सम्पूर्ण वं!भत्सता मो मामिव रूप में उदघाटित विया गया हूँ 1 इस कृति में लेखक ने वतमान राज नीति मे राजनीतिज्ञो ये भ्रष्ट चरित वो उद्घाटित करने वा प्रयास किया है। आपातकाल के जीवन के इस रूप वी आवगरहीन रपट प्रस्तुत करने वाली यह रचना निश्चय हौ एक उपलब्धि हैँ । शिल्प की सहजता तथा विवरणा की प्रामाणिक्ता के कारण यह उपयास आपातूवाल के ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में याद रखा जाएगा । प्रजाराम (१६८३) श्री याटवेद्र शर्मा चाद्रं इत 'प्रजाराम! मे आपातकाल और जनता पार्टी के शासन के छह महीना को आधार बनाया गया है । जहाँ एक आर आपातकाल का अत्याचार भयावह आतंक शर संत्रासपूण चित्रण लेखक ने क्या है तो दूसरी ओर समद्धि शात्रि और विवास का चित्रण लेखक ने किया है। इस उपयास वा नायक प्रजाराम सवथा प्रतीक मात्र है जा आपात्‌काल वी मान- सिकता का द्योतक है। इजीनियर आशुतोप अपन स्वाय के लिए अनेक भ्रष्टाचार, गलत मस्टोल बनाता है, सीमेट वे' मामले मे धाधली वरता है तथा और भी अनेक प्रष्ट तरीके अपनाकर लाखो का वारा-न्यारा करता है । एसा भ्रष्टाचार अधिकारी वग साधिवार वरते आये हैं। भाशुतोप वा बडे नेताआ के साथ मेल जोल होने बे! कारण उसका कोई भी विरोध करन वाला नही था। अफ- सर पुरस्कार लेने हेतु जत्ररदस्त नसबदी करने लगे थे । शहरा की सुदरता के नाम पर मवानों पर बुलडोजर चलाये जा रहे ये । ऐसी अनंक घटनाओ का यथाथपरक चित्रण इस उपयास में क्या गया है । आपातकाल की पष्ठभूमि पर लिखे गए उपयासो में 'प्रजाराम का जपना विशिष्ट स्थान है ॥ सुराज थी हिमाशु जोशी कृत 'सुराज' कम पष्ठो मे सिमटा हुआ वहद्‌ कृथा को १ डा? आदश सकसेना--समीक्षा, अप्रैल-जून १६८३, पृ० २५




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