भारतीय प्राचीन लिपिमाला | Bhartiya Prachin Lipimala

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Bhartiya Prachin Lipimala  by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतोय प्राचीनलिपिमाला. नीरज ज.> प>ब८ कब ीन->-ीलअ १--भारतवर्ष में लिखने के प्रचार को प्राचौनता, ने ओ लिन ता भारतीय आये लोगों का सत यह है कि उनके यहां बहुत प्राचीन काल से लिग्वने का प्रचार चला आता है और उनकी लिपि (त्राह्मी ), जिसमे प्रत्थेक अक्षर यथा चिन्ह एक ही ध्वनि या उच्चारण का सचक है और जो संसारभर की लिपियो में सब स सरल और निदोप है, स्वयं न्रह्मा ने बनाई है, परतु कितने एक यूरोपिअ्न्‌ विद्वानों का यह कथन है कि भारतीय आये लोग पहिले लिग्वना नहीं जानते थे, उनके बेदादि ग्रंथों का पठनपाठन केवल ऋधथनश्रवणद्वारा ही होता था और पीछे से उन्होंने विदेशियों से लिखना सीखा, मक्‍्ससूलर ने लिखा है कि मैं निश्चय के साथ कहता हूं कि पाणिनि की परिभाषा में एक भी शब्द ऐसा नहीं है जो यह स्चित करे कि लिखने की प्रणाली पहिले से थी, )और वह पाणिनि का समय इंसवी सन्‌ प्रवे की चौथी शताचदी मानता है. वर्नल का कथन है कि फ़िनिशिअ्नन्‌ लोगो स भारतवासियो ने लिग्वना सीखा और फिनिशि- अन्‌* अक्षरों का, जिनमे दक्षिणी अशोकलिपि (त्राह्मी) घनी, मल में शेस पूषे ५०० से परिले प्रवेश नहीं हुआ और संभवतः है.स. पूले ४०० से पदहिले नहीं . ) प्रसिद्ध पुरातत्वचेत्ता बुलर, जो 'सेमिटिक्‌ ” लिपि से ही भारतवपे की प्राचीन लिपि (च्राह्ली) की उत्पत्ति मानता है, मकक्‍्समूलर तथा घर्नेल के निणेय किये समय को स्वीकार न कर लिग्वता है कि 8 स्‌ पूर्व ५०० के आसपास, अथवा उससे भी पवे, न्राह्मी लिपि का घड़े श्रम से निमोण करने का काये समप्प्त हो चुका था और 'भारतवपे में सेमिटिक' अक्षरों के प्रवेश का समय हे.स. पूषे ८०० के क्रीब माना जा सकता है, तो भी यह अनुमान अभी स्थिर नहीं कहा जा सकता. 'भारतव्े या सेमिटिक्‌ देशो के और प्राचीन लेखों के मिलने से इसमे परिवतेन की आवश्यकता हुई तो अभी अभी मिले हुए प्रमाणों स सुझे स्वीकार करना पड़ता है कि [ मारतवषे ] मे लिपि के प्रवेश का समय 1 पघाणयमासिक सु समये भ्रास्ति सजायमें यत । धात्रात्चराणि सष्टानि पत्राकूढाणपत परा॥ ( झान्हिकतत्व ' और 'ज्योति- स्तत्व ” में बृहस्पति का वचन). नाकरिप्द्यदि अज्या स्तिखित चसु रत्तमम । सजेयमस्प शोकस्य नाभविष्यस शभा गति (नारदस्व॒ति) बृहस्पतिरचित मल्ु के वार्तिक में भी ऐसा ही लिखा है (से घु ई, जिल्‍्द २३, पृ ३०४), और चीनी यात्री हयुएंत्संग, जिसने ई स ६२६ से ६४४ तक इस देश की यात्रा फी, लिखता है कि(भारतवासियों की घर्णमाला के अक्षर बह्मा ने बनाये थे और उमके रूप (रूपातर) पहले से अब तक चले आ रहे है! ; यी घु रे घे.च जिल्द १, पृ ७७) “ मजें,हि ए स लि, प्र २६२ (अलाहाबाद का छुपा ) ४६ फिमिसिश्रन-+फ़िनिशिआ के रहने वाले एशिआ के उत्तरपश्चिमी विभाग के 'सीरिआ ' नामक वेश ( त॒कराज्य में ) को ग्रीक ( यूनानी ) तथा रोमन लोग 'फिनिशिआ' कहते थे वहा के निवासी भाचीन काल में घड़े व्यवलायी तथा शिक्षित थे उन्होंने ही यूरोप बालों को लिखना सिखलाया और यूरोप की प्राचीन तथा प्रचलित लिपियां उन्हींकी लिपि से निककी हैं न विन | न जीना लत ५ सशसासाई पे,पृ. ६. “५ (झरवी, इथिओपिक्‌, अस्मइक्‌, सीरिअश्रकू, फ़िनिशिअत्त, उमा अ पश्चिमी पशिय्रा और आफ़िका खेड की भाषा- आओ तथा उनकी लिपियों को 'सेमिटिक अथोर्त्‌ वाइबलभसिद नूह के पुत्र शेम की संतति की भाषाएं और लिपियाँ कहते ह




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