श्री स्थानांग सूत्रम भाग 4 | Shri Sthananga Sutram Bhag 4

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Shri Sthananga Sutram Bhag 4  by घासीलाल जी महाराज - Ghasilal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुघाटीका स्थो०५ड०२छू०२ विद्ारविपतश्े क्प्याऋष्प्यनिरुपणम्‌ ््‌ ध्यय्य््््च्च्लच्चससलच्च्स्स्च्च्च्च्सच्य्सस्चस्च्च्चच्िच्चलस्स्स््य्सनललनस्ललल्लस-्लल्‍क्‍णणललल भये सत्ति २। दुर्भिक्षे वान्अथया भिक्षाया अभावे सति श। बान्‍अथवा कोडुपि शत्रत्रमाप नं पुरुषों ' निरन्तरं प्रव्यथतेन्अन्तर्मावितण्यथेल्वादू व्यथामुत्पादयति चेचदा; अधवा- प्ररहेदू वा खलु कोडपि ? इतिख्छाया, को5पि पुरुषों गज्गादो प्रतहेत-प्रवाहयेत्-प्रक्षिपेत्‌ तदा ३॥ अज़ापि अन्तर्मावितण्यथता । बालअथवा दकौचे-उन्मागंगामितया प्रचुरे गज्ञादीनाम्‌ जलसमूहे सहता वेगेन एममाने८ आगच्छाते सति 2 वाज्अथवरा अनायघुजस्छेच्छेयु आक्रामत्सु सत्पु-स्लेच्छेस्यो जीवनवा रित्रादीनामपहारसंभवात्‌ तदाक्रमणे सति ५ एमिः पश्चमिः कारणे- निग्रन्था भिंग्र न्थ्यो वा गज्गावां महानदीरुत्तरीतुं संतरीतु वा शक्लुव॒न्ति। तदुक्तम- ' ५ अबाहे दुव्मिक्खे, भए दओघं॑पि वा महंतंसि । प्रिमवतालणं वा, जया परो वा करेज्जाति ॥ १ ॥ छाया--आवाधायाय दुर्भिज्षे मये दकोधे वा महति । परिभवताडन वा यदा परो वा करिष्यति ॥ १ ॥ इति ॥ सू० १ ॥ उपस्थित किया गया हो क्वि जिसमें धर्मोपकरणके अपहरण, होमेकी बात -हो, अथवा - दुर्मिक्ष मिक्षाक्री प्राप्ति जब नहीं रहीं हों अथवा-हजत्रताकों धारण करनेवाला कोई पुरुष निरन्तर व्यधाको-कष्टको दे रहा हो-अथवां कोई पुरुष गद्ला आदिमें बहा देता है, अथवा-उन्मा गगामी हो जानेसे गगा आदिका प्रचुर जल्ससूह बड़े -वेगसे घढ रहा हो अधवा-जब स्लेच्छ अनाथेजन, आऋकरमण' कर रहे हों। और ऐसी स्थितिमें उनसे जीव्रनकी या चारित्रकी अपहृति(नाद) होनेकी संभांचना हो तो ऐसे इन पांच कारणोंके होने पर निग्र न्‍्थ-साधु साध्च्रियोंको गंगा “इछछओु झोबे। लग ७पस्थित थये। ऐ 8पस्थित थये। छाय छे हे प्एने द्षीघे धर्मोपधरणुना श्थप- छरणुने। शय 0त्पन थये। डाय, (२) इलिक्षने आरणे .व्ते मिक्षानी प्राप्ति गशह्य भनी गर्ध ढाय, (3) जथतर ऊ,४ शत्रु निरन्तर व्यथा (४४) पडे|यादी रहो डे।य, जथपवा (४) 5न्‍्मागंणामी थव ने आरएु जगा गादहिने। अथुर ““क्षयभू$ घणु० वेशथी ३६७ प भी रहो छे।य जथपा जे व्यध्ति भताने पताणे गाणा ,लाहिमां इणाई हेशे औेवे। लय हत्पत थये। ऐे।य, शथवा (५) अ्लेच्छा3 ब्ययारे जाडइमणु थे रह्च' छोा।य ब्यने ते '४रएे ब्य्यारे सतत नष्ट थवाना संभव शणुते। छाय, जा पांथ आरणे। त्यारे ७पस्थित धाय, त्यारे भ्रमण. निभ्थे। ने विभ्रथीलेने जाभाहि भद्धानरीओा[ 8तरराब' जने नाव जाहि रा तेमने पार दरवा३' इध्पे छे पु भह,




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