सामुद्रिकशास्त्रम् | Saamudrikshastrm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सान्वयमापाटीकासमतमू । (३. सनयी: लक्षण किंयने तत इह जनीपरूतिः स्यात्तजो इन दोनों के लक्षण फर जायें तो इसलोकम सबका उपकार होय ॥ ७ इत्थ विचिन्त्य सके रवरदिं ससुद्रण सम्यगवगम्य । नुख्ीलक्षणशास रचयांचक्े तदादि तथा ॥ ८ ॥ अन्वयाधी-(समुद्रण इत्यं सुबर स्वटदि विचिस्त्य सम्यकू च अवगम्य) समद्रने श्रष्ट अपन इदयम विचार करके आर अच्छे मकार प्र समशिके (च्- स्त्रील्नणगान्र व था तदादि रचवाचिक्र) मनुष्य भार स्त्रीक ई छश्षण जिसमें एसा शास और आदिम मनप्यके है क्षण जिसमें सो रचा अर्थात बनाया८ तदाएिं नारदलश्कवरादमाण्डव्यपण्सखप्रमुखेः । रचित कचित्पसद्ात्पुरुपबीलक्षण किशित ॥ ९ ॥ अन्वया-( वदापि नारदलक्षकुवरादमाण्डब्यपण्मसप्रमसें: प्रसद्ाव- पुरुपस्त्रीठक्षण किंचित कचिद, रचिव्रमू-) अस्याथ-तव भी नारद मुनि जाननवाठ आर चराह माण्डब्य स्वामिकानिक आदिकोंने मसडुसस परुप और सीके लक्षणों करके युक्त कुछ कुछ शाख्र कहीं बनाया ॥९॥। तदनन्तरमिह भुवने ख्याने ख्रीपुंसलश्षणज्ञानम,। दर्वोधि तन्मददिति जडमतिभिः खण्डतां नीतम्‌ ॥ 3० ॥ अन्वयः-( तदनन्तरस देह भुवने सीपसलक्षणज्ञान ख्यातम-अति दुर्बोध तत्र, महद, जढमतिभिः खण्डतां नीतम- )अस्थाथः-ताके पीछे स लोक सी परुपके लक्षणाका ज्ञान प्रगट हुआ-विसस वह चढ़े जानके कठिन होनेसे जडवद्धियोने खढित कर दिया ॥ १० ॥ '्ीभोजनृपसुमन्तप्रभतीनाममरतो पि विद्यन्ते । सामुब्रिकशासत्राणि प्रायो गदनानि तानि परम ॥ ११ ॥ अन्वयार्थी-( श्रीमोज दपसुमन्तमभृतीनाम अपि अयतः सामुदिक- शास््राणि दियन्तें ) श्रीमाच, भोज आर सुमन्त आदि राजाभकि आगे- भी सामद्िक शाख थे ( प्रायः तानि परे गहनानि सन्ति) परन्तु वे बहु- घाकरिके अत्यन्त कठिन और गृढ थे ॥ ११ ॥




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