सामुद्रिकशास्त्रम् | Saamudrikshastrm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.81 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सान्वयमापाटीकासमतमू । (३.
सनयी: लक्षण किंयने तत इह जनीपरूतिः स्यात्तजो इन दोनों के लक्षण
फर जायें तो इसलोकम सबका उपकार होय ॥ ७
इत्थ विचिन्त्य सके रवरदिं ससुद्रण सम्यगवगम्य ।
नुख्ीलक्षणशास रचयांचक्े तदादि तथा ॥ ८ ॥
अन्वयाधी-(समुद्रण इत्यं सुबर स्वटदि विचिस्त्य सम्यकू च अवगम्य)
समद्रने श्रष्ट अपन इदयम विचार करके आर अच्छे मकार प्र समशिके (च्-
स्त्रील्नणगान्र व था तदादि रचवाचिक्र) मनुष्य भार स्त्रीक ई छश्षण जिसमें
एसा शास और आदिम मनप्यके है क्षण जिसमें सो रचा अर्थात बनाया८
तदाएिं नारदलश्कवरादमाण्डव्यपण्सखप्रमुखेः ।
रचित कचित्पसद्ात्पुरुपबीलक्षण किशित ॥ ९ ॥
अन्वया-( वदापि नारदलक्षकुवरादमाण्डब्यपण्मसप्रमसें: प्रसद्ाव-
पुरुपस्त्रीठक्षण किंचित कचिद, रचिव्रमू-) अस्याथ-तव भी नारद
मुनि जाननवाठ आर चराह माण्डब्य स्वामिकानिक आदिकोंने मसडुसस
परुप और सीके लक्षणों करके युक्त कुछ कुछ शाख्र कहीं बनाया ॥९॥।
तदनन्तरमिह भुवने ख्याने ख्रीपुंसलश्षणज्ञानम,।
दर्वोधि तन्मददिति जडमतिभिः खण्डतां नीतम् ॥ 3० ॥
अन्वयः-( तदनन्तरस देह भुवने सीपसलक्षणज्ञान ख्यातम-अति
दुर्बोध तत्र, महद, जढमतिभिः खण्डतां नीतम- )अस्थाथः-ताके पीछे
स लोक सी परुपके लक्षणाका ज्ञान प्रगट हुआ-विसस वह चढ़े
जानके कठिन होनेसे जडवद्धियोने खढित कर दिया ॥ १० ॥
'्ीभोजनृपसुमन्तप्रभतीनाममरतो पि विद्यन्ते ।
सामुब्रिकशासत्राणि प्रायो गदनानि तानि परम ॥ ११ ॥
अन्वयार्थी-( श्रीमोज दपसुमन्तमभृतीनाम अपि अयतः सामुदिक-
शास््राणि दियन्तें ) श्रीमाच, भोज आर सुमन्त आदि राजाभकि आगे-
भी सामद्िक शाख थे ( प्रायः तानि परे गहनानि सन्ति) परन्तु वे बहु-
घाकरिके अत्यन्त कठिन और गृढ थे ॥ ११ ॥
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