भारत के प्राचीन राजवंश भाग 3 | Bharat Ke Prachin Rajvansh Bhag 3

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Bharat Ke Prachin Rajvansh Bhag 3  by पंडित विश्वेश्वरनाथ रेउ - Pandit Vishveshvarnath Reu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्रकूट । श्ष यह भी अपनी सेनाका वेतन समयपर दे देता है। इसके पास बहुतसे हाथी, घोड़े है और घनकी भी इसे कुछ कमी नहीं है | इसका राज्य कोंकणसे चीनकी सीमातक फरेंछा हुआ है । इसके सिक्के तातारी द्म्म है | उनका वजन अरी द्रम्मोंसें डेवढा है | इनपर इनका राग्याभिपेक सवत्‌ लिखा रहता है| बलहरा इनका वैसा ही खानदानी छि- ताब है जैसा कि ईरानके वादशाहोंका खुसरो। यह अक्सर अपने पड़ोसी राजाओंसे छड़ता रहता है। इनमें विशेष उछेख योग्य गुजरा- तका राजों है (! इन खुददने हिजरी सन्‌ ३०० (वि० सं० ९६९-ई० स० ९१२) के करीव * किताबुल मसालिक बउल ममासिक ! नामकी पुस्तक डढिखी थी | उसमें लिखा है --- (१ ) जिस समय यह पुस्तक लिखी गई थी उस समय राष्ट्रकूद राजा अमीधवर्ष प्रथमका राज्य था। अत यह बृत्तान्त भी उसीके समयका होना सम्भव है | इसने ग्रुजरातके राष्ट्कूट राजा श्षुवराज पर चढ़ाई भी की थी । दक्षिणके राष्ट्रकूट राजा धुबराजके इतिहासमे लिखा गया है ऊक्लि इसका राज्य दक्षिणमें रामेश्वरसे उत्तरमे अयोध्यातक फैछा हुआ था। नेपालकी वशावलीमे लिखा है कि श० स० ८११ (वि० स० ९४६) में करनाटक चशको स्थापन करनेवाले क्यानदेवने दक्षिणसे आकर सारे नेपाल देश पर अधिकार कर ठिया था । इसके वशज छ पीढी तक यहँके शासक रहे । श० स० ८११ में करवमाटकका राजा कृष्णराज द्वितीय था और इसकी सातवीं पीठीम कर्के- राज द्वितीय हुआ | इससे चाह्यवज्ञी तप द्वितीयने राज्य छीन लिया। अत सम्भव दे कि उवराजके बाद उसके वशजोंने अयोध्यासे आगे बढकर नेपालके कुछ भाग पर अधिकार कर छिया हो और बादम कुंष्णराज द्वितीयने आक्मण कर सारा देश ही छे लिया हो । तथा नेग्र७ और चीनकी सीमा मिलती हुई होनेके कारण ही सुलेमानने इनके राज्यका चीनडी सीमातक औा हुआ होना लिखा हो । (२ ) यह छेख क्षष्णराज द्वितीयके समयक्ा है ।




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