मेरी हजामत | Meri Hajamat

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Meri Hajamat by अन्न पूर्णानन्द - Anna Poornanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) उनकी रगड़ से जे चिनगारियाँ पैदा द्वोवी हैं उन्द्ी चिन- गारियों फा नाम भूस है। इन ढपोरसल्लों से पूछना चाहिये कि मगर चिनगारियो का नाम भूस है ते भेरे पेट में जो लट्टाददन हो रहा है उसका क्‍या नाम है ? उदूी फे एक अगडघत्त कवि ने मेरे पास कुछ शैर ल्विस भेजे दें जो इस तरह हैं-- आँस निकली, पेट पचका, सुँद् खुला, निकलों जवान । क्या घजा हो जाती है, भूसे से पूछा चाहिये ॥ भूख हो जब पेट में खाने की सुशवू नाक समें। मुँह में पानी फे मजे को मुँह से पूछा चाहिये !॥! पूरी-तरकारी दद्दी-शक्कर वे मूली और अचार । खाने की मेकदार मरभुक्से से पूछा चाहिये ॥ जब न गेहूँ दे! ते। भूसा दी गनीमत जानकर | चट्ट करने का भजा आँतों से पूछा चाहिये ॥ पेट गों गों बेलता है जब बहुत लगती द मूख । इसकी हालत ते मियाँ 'चेंघट? से पूछा चाहिये ॥ कट्दा जाता है कि विपत्ति के समय रास माम को सुमि- रसा चाहिये। मैंने ऐसा ही किया पर फई बार 'दि राम? फे बदले “हाय भूख मुँह से निकल गया । मेरी दालत ते। ऐसी अबतर दवा गयी थी कि यदि इस समय भगवान बुदछ एक झुट्टी में चना और दूसरी मुट्ठी में निर्वाण लेकर मेरे सामने झाते तो मैं बडे ग्रसमजस में पड जाता कि क्या दो. और क्या




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