साहित्य समीक्षा | Sahitya Shamikshya

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Sahitya Shamikshya by कालिदास कपूर - Kalidas Kapoor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समालेोचना श्ड साहित्य क्षेत्र विस्तृत हो, यदि उसमें साधारण श्रेणी के या दध्ानिकारक ग्रथ भी हैं वो कोई हजे नहों। परतु अब वह समय आगया है कि हमारे प्रतिष्ठित साहित्य-सेवी साहित्य-ेत्र की निकाई का कार्य हाथ में ले। इस कार्य के लिए सादस और घैये की वो आवश्यकवा है ही, क्योंकि असतुष्ट लेसकों की प्रत्यालोचनाओं? झौर जनता की लापरबाही का सामना करना है। साथ दी समालोचना फी शैली को भी परिमार्जित करने की आवश्यकता है । आज-कल जे समालोचना का ढग प्रचलित दै उसमें या ते किसी ग्रथ के देष ही देष दिखा दिये जाते हैं, या फिर सारीफ के पुल बाँध दिये जाते हैं। यद्द ठीक नहीं है। श्रान्नोचना में प्रकाश और छाया, गुण कौर अवशगुण, दोनों का ऐसा समिश्रण द्वोना चादिए कि पाठक फे हृदय में पुस्तक के प्रति तिरस्कार का भाव न आसे, और लेसक का दिल न दुखे । इस ढंग की आलोचना विशेषदया साधारण श्रेणी की पुस्तकों के लिए ही हितकर है। किसी श्रतिभाशाली या उदोयमान लेसक की लेखनी से निकली हुई पुस्तक की आलोचना में विशेष सहृदयता से काम लेने की आवश्यकता है। उसकी आलोचना फे लिए उसी ढग की पैयारो की आवश्यकता है जो सर्व-मान्य साहित्य-रत्नों की परस के लिए निद्रिष्ट है।




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