उषा | Usha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकरण २ रा श्छ
चह अच अच्छी तरह जामरित होगई थी और आंखें मलना उसने
वनन््द करदिया था। बडे भारी आश्षयय के साथ वह गाज उठी
/ परंतु यह कया ? उपाकी पुतिलयों की भातेि तेरी भी पुतालियोंसे
तेजके फजारे उछल रहे हैं | फूली हुईं पत्तिया वाले मानो पत्म ही न हों !
तुझे भी पूर्णिमाको करिसीने चाम्द्रिकासे न्हिलाया है क्या ? आँखें भी
अजञ्जन आजासा जान पढता है । ?
बह हँसती-हँसती चली गई पीछे से उसके हर्ष के जल की तरगें
मेरे कमरे में उछलती रहीं ।
. परन्तु यह उपा कौन थी ! सुन्द्रियों के सोन्दर्य नगर की सोन्दर्य
देवी यह उपा है कोन ? जगतके दर्शनों भे के महा विकट प्रश्न की
मॉति उस समय तो मेरा यह प्रश्न अनुत्तर हा रहा ।
वक्ष ज्ञासाओंमें तिजलीफे चमकारे होते है वेसे ही मेरे देहकी
शाखाओं में अद्भुत किग्णें। की चमचमाहट होती थी । शूलके शरका-
सा एक विदुद्वाण सूँसाटे करता हुआ मेरे हृदय के पार होगया । मास्वि-
'कर्म जाकर यह पिजल्ा का किरण फूछा ओर पुष्प प्रकट हुए ।
मेरी निगाह द्वालॉपर पडी तो छिली हुई पँंसडियों वाले पक्ोंढ़ी
माला प्र कमरेंझो सजाती हुई दीस पडी। यारीम देखातों बेल की
एका एक आसपर फ़िले टुए पद्म देखपडे । पुष्तकोंकी ओर देखा तो
वहाँ भी वेही खिले हुए क्मलों की ऊिलट्वियों देस पड़ी ।
पदार्थ विज्ञानी कहते है कि जडमें भी चेतन किरणोंके विद्युत्कण
( 1 ९९६०घ६४ ) उठते है और महा समर्थ सुहमदरीफ यत्र से ठेख
पड़ेते हे । इन विद्युकणोंके पुष्प बनगये हैं। ओर जगह जगह प्रकट
शेगये हों इस तरह के सिटी हुई पैंसडियों वाले पद्म जगट जगह मुझे
देख पढते थे ।
ये प्रतिवि्य थे किसके ? कामन टूमन और जादू में मानता
२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...