उषा | Usha

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Usha by गिरिधर शर्मा - Giridhar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकरण २ रा श्छ चह अच अच्छी तरह जामरित होगई थी और आंखें मलना उसने वनन्‍्द करदिया था। बडे भारी आश्षयय के साथ वह गाज उठी / परंतु यह कया ? उपाकी पुतिलयों की भातेि तेरी भी पुतालियोंसे तेजके फजारे उछल रहे हैं | फूली हुईं पत्तिया वाले मानो पत्म ही न हों ! तुझे भी पूर्णिमाको करिसीने चाम्द्रिकासे न्हिलाया है क्या ? आँखें भी अजञ्जन आजासा जान पढता है । ? बह हँसती-हँसती चली गई पीछे से उसके हर्ष के जल की तरगें मेरे कमरे में उछलती रहीं । . परन्तु यह उपा कौन थी ! सुन्द्रियों के सोन्दर्य नगर की सोन्दर्य देवी यह उपा है कोन ? जगतके दर्शनों भे के महा विकट प्रश्न की मॉति उस समय तो मेरा यह प्रश्न अनुत्तर हा रहा । वक्ष ज्ञासाओंमें तिजलीफे चमकारे होते है वेसे ही मेरे देहकी शाखाओं में अद्भुत किग्णें। की चमचमाहट होती थी । शूलके शरका- सा एक विदुद्वाण सूँसाटे करता हुआ मेरे हृदय के पार होगया । मास्वि- 'कर्म जाकर यह पिजल्ा का किरण फूछा ओर पुष्प प्रकट हुए । मेरी निगाह द्वालॉपर पडी तो छिली हुई पँंसडियों वाले पक्ोंढ़ी माला प्र कमरेंझो सजाती हुई दीस पडी। यारीम देखातों बेल की एका एक आसपर फ़िले टुए पद्म देखपडे । पुष्तकोंकी ओर देखा तो वहाँ भी वेही खिले हुए क्‍मलों की ऊिलट्वियों देस पड़ी । पदार्थ विज्ञानी कहते है कि जडमें भी चेतन किरणोंके विद्युत्कण ( 1 ९९६०घ६४ ) उठते है और महा समर्थ सुहमदरीफ यत्र से ठेख पड़ेते हे । इन विद्युकणोंके पुष्प बनगये हैं। ओर जगह जगह प्रकट शेगये हों इस तरह के सिटी हुई पैंसडियों वाले पद्म जगट जगह मुझे देख पढते थे । ये प्रतिवि्य थे किसके ? कामन टूमन और जादू में मानता २




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