संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका | Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika

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Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika by ईश्वरचन्द्र विद्यासागर - Ishvarchand Vidyasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ २१ ) धमी > भुनी इमौ; साथू + एतो - साधू एतो; बन्धू + आगतौ < बन्धू आगतो; लते + इमे 5 लते इमे; शयाते + अभेको ८ शयाते अर्भको । (२) अद्सू शब्द के ईकारान्त ओर ऊकारान्त पदों के परे स्वर रहने से सन्धि नहीं होती । यथा--अमी + अश्वा+ ८ अमी अश्वाओ, अम्‌ + अर्भको र अमू अर्भको । (३ ) ओकारान्त तथा एक स्वर वाले अव्यय के परे स्व॒र रहने से सन्धि नहीं होती। यथा--अहो + अयम्‌ 5 अहो अयम ; अहो + आयाति ८ श्रहो आयाति; आ+ एवम्‌ 5 आ एवम्‌;उ+ उत्तिष्ठ >उ उत्तिष्ठ । (४) प्युतस्वर की सन्धि नहीं होती । यथा--राम३ +- आगच्छु ८ राम३रे आगच्छ । अभ्यास ( 56/टां5० 2 ) (१) निम्नलिखित शब्दों की सन्धि करो ( ]०। ४1९ 1010ए178 )४--सुर + असुरो; हित + उपदेशः; देव +- ऋषिः; तव +॑- एुतत्‌; कृप न- उदकम्‌; रवौ +- अस्तसिते; अद्य + एव; पौ + अकः; युध्येते + इमो; सुनी ८ इमौ; इति +- उवाच; सखे +- अनुग्ृहाण; विष्णों +- अब; दुःख +- क्रतः; कम्बल + घरणस ; सर्वे +- एव जसी +- अशाः । (४ ) सन्धिविच्छेद करो ( 1019]100 ) :--ममैच; सरस्यस्बु; उपैति; अभ्युद्यः; तथेति; देवत्भः; अधरोष्टः; राजर्पि;; दुःखात्तः, गिरीन्द्रः, दक्ञाण:, तेडपि; इत्यादि; प्रभ आगच्छ; गवाक्ष:; वन्धो5्पेय; छोकादंस ; स्व एव; त्वयोक्तम्‌; सुनावायाते; कयिसया गच्छन्ति ।




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