संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका | Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५ २१ )
धमी > भुनी इमौ; साथू + एतो - साधू एतो; बन्धू + आगतौ <
बन्धू आगतो; लते + इमे 5 लते इमे; शयाते + अभेको ८ शयाते
अर्भको ।
(२) अद्सू शब्द के ईकारान्त ओर ऊकारान्त पदों के
परे स्वर रहने से सन्धि नहीं होती । यथा--अमी + अश्वा+ ८
अमी अश्वाओ, अम् + अर्भको र अमू अर्भको ।
(३ ) ओकारान्त तथा एक स्वर वाले अव्यय के परे स्व॒र
रहने से सन्धि नहीं होती। यथा--अहो + अयम् 5 अहो अयम ;
अहो + आयाति ८ श्रहो आयाति; आ+ एवम् 5 आ एवम्;उ+
उत्तिष्ठ >उ उत्तिष्ठ ।
(४) प्युतस्वर की सन्धि नहीं होती । यथा--राम३ +-
आगच्छु ८ राम३रे आगच्छ ।
अभ्यास ( 56/टां5० 2 )
(१) निम्नलिखित शब्दों की सन्धि करो ( ]०। ४1९
1010ए178 )४--सुर + असुरो; हित + उपदेशः; देव +- ऋषिः; तव +॑-
एुतत्; कृप न- उदकम्; रवौ +- अस्तसिते; अद्य + एव; पौ + अकः;
युध्येते + इमो; सुनी ८ इमौ; इति +- उवाच; सखे +- अनुग्ृहाण; विष्णों +-
अब; दुःख +- क्रतः; कम्बल + घरणस ; सर्वे +- एव जसी +- अशाः ।
(४ ) सन्धिविच्छेद करो ( 1019]100 ) :--ममैच; सरस्यस्बु;
उपैति; अभ्युद्यः; तथेति; देवत्भः; अधरोष्टः; राजर्पि;; दुःखात्तः, गिरीन्द्रः,
दक्ञाण:, तेडपि; इत्यादि; प्रभ आगच्छ; गवाक्ष:; वन्धो5्पेय; छोकादंस ;
स्व एव; त्वयोक्तम्; सुनावायाते; कयिसया गच्छन्ति ।
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