रवीन्द्रनाथ की परलोक चर्चा | Ravindranath Ki Parlok Charcha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पदन पहले ६ नवम्बर को वे जोड़ासाकॉाले५ पकने वीयसति गीसरेअ्तल्ते पर
अनेक प्रात्माओं को लाते हैं । उनके कि मोर अंश हैं ??०, *
#४* उसके बाद बूला मे भौर एक आकर गेम पंकंडो थी ।
इस दिन भी भनेक सोचने योग्य बातें 'सिखितृरेप: मे सामने चाय एक
बहुत ध्राइचर्य जनक घात पायी गयी । श्मी-आया घा। अन्य प्रनेदः-वीतों
के बीच उसने कहा, 'शास्तिनिकेतन के ध्र,व को भुे-मोद, पाती हे ।
'वह बहुत पहले की बात है । ध्र,व भ्रौर दो झन्य लड़के मेरे हो घर में
शमी के साथ रहते थे | बेला ने उनकी देखरेख का जिम्मा लिया--उनके
'पद़ने-लिखने भें भी वह सहायता करती। जब उसका नाम भागा
तब में कुछ भी याद नहीं कर पाया । भपूर्व (धपृर्वशुमार चन्द) से फहा,
हो, प्रव नाम का एक छात्र था ।' रात्रि में बिस्तर पर लेटते ही सहसा
उन तीवों की बातें याद झागीं । ध्रुव पर बेला बहुत स्नेह रखती थी ।
यह स्वाभाविक ही है कि उसकी बात इमी को याद झाये । किन्तु बुला
के हाथ से यह बात फंसे प्रकट हुई ? शमो की बातें बड़ी भजेदार हैं।
सुकुमार की बातें भी दीकः जैसे उसी को तरह हैं। मोहनलाल ने इन्हें
लिख रखा है, किसी समय देख सकती हो”
किन्तु रवीस्द्रनाथ इन बातों में ग्रन्यविश्वासी नहीं। मूलतः थे पूर्ण
ंशयरहित नहीं थे । फोई-कोई व्यक्ति उन दिनों यह मत जाहिर करते
कि सारे लेख उनके पपने ही प्रवचेतन सन के प्रतिफलित रूप हैं। धुरू-
शुरू में रवीसद्रनाथ उसे एकबारगी उड़ा भी नहीं देते थे । उम्रा देवी के
हाथ में मृत मणिलाल गांगुलि वी बातें प्रकट होने के सन््दर्म में रानी
महलानविस को ये उसी दिन (६ नवम्बर, १६२६ ई०) एक भौर पत्र में
'मिखते हैँ
“उत्तरों फो मुनरुर लगा जमे यही बोल रहा हो । विस्तु इन सब
मादों के बारे में पुप्ट प्रमाण नहीं मिलता। इसका प्रझुस कारण शह है
हि मन तो पूर्णतः निविगार नहों। उसकी डो पारणा होती है उसका
हयु भबेंदा याहर रहता, उसरी धपनों प्रश॒ति के मध्य हो रहता
है। मैंने जब शटा कि समा जैसे मधिलाल योद राध है सब था सन का
खसगना पुराझायूश पेरा आत्मगत हो सशता है । तो भो धारणा बनी हिः
रवीखनापद की परलोकषर्डा [२५
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