मोती सूखे समुद्र का | Moti Sookhe Samudra Ka

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Moti Sookhe Samudra Ka by कैलाश वाजपेयी - Kailash Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेहमान बन मुस्वान आई है रोद ले उल्लास वो हर उमर की देहरी पर जिदगी ने खुशी वी एप घडी पाई है सास अपनी बही बैेपर्दा नहो जाये गरल पीकर ही कोई क्षण अमर बनता है । 0




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