मृग और तृष्णा | Mrig Aur Trishana

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Mrig Aur Trishana by श्री हरिनारायण - Shree Harinarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शब्दों के कठघरे से मुक्त आवरणरहित अर्थ का सुगंध की बंधी हुई गाँठ कोई आये तो मैं पुनर्जन्मकी सुगंध से नहला दूँगा । ये मेरी नौकाएँ न जाने कितने वाक्य तैरती हुई मेरे पास आयी है धृंधले और गहरे आदिम धुंधलकों को पार कर । मेरे अहंकार के प्रकोष्ठ में अस्तित्व के सारी गुणात्मक अभिव्णवित्तयाँ शमित है नया रूप पाने । काला इतिहासपुरुष और मै हम दोनों यात्री है बच्चों की स्‍लेट की रेखाएँ हमारे उलझे हुए रास्ते है हम उलझते हुए मंजिल ढूढ लेगे । पदचिहन छोड देंगे किसी भी अपरिचित यात्री के लिए जी चलने का निर्णय करेगा चल देगा।




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