पाँच उपन्यासिकाएं पाँच लेखिकाएँ | Panch Upanyasikayan Panch Lekhikayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दिलासा >ेते | फिर भी माँ के विपय मे तुम्हें कुछ बताने बा साहम मैं नहीं
जुटा पायी । माँ की मृत्यु थे विषय में भी मैंने तुम्हें वुछ नही बताया 1
मेरी मन स्थिति से अनभिन्न तुम उन दिनो अत्यधिव उत्साह मथे।
तुम्हारी नौकरी लग गयी थी । जब भी आत, आँखो में सुबहले भविष्य का
सपना होता, “आज एक मकान दखा है नोरू, चलो तुम भी देख लो, यदि
तुम्हे पसद हो तो आज ही एडवाँस दे द 1”?
कभी कहते, ' जरा फ्योचिर माट तक चलो न पलेंग और सोफ़ा सेट के
लिए ऑडर द दू ।”
तुम्हारा उत्साह मुझे शब्दवेधी वाण की तरह वेघ जाता | काश, तुम्हारी
तरह मैं भी त्िद्वद्व हा कर भविध्य के सपने देख पाती 1 माँ का कहा अक्षरश
सत्य लगने लगा, एक बार उहोने बहा था, “भविष्य तो भुलावा है । वतत-
मान में जीने वो आदत डालो, क्योकि आने वाली हर बल बतमान बन कर
ही अपना होता है। भविष्य पर कसी का वश नही ।/ पर माँ की तरह
मैं निद्द्व नही हो पायी । तुम्हार उत्साह का मैं स्वागत नही कर सकी |
“मैंने मा को तुम्हारे विषय मे सब कुछ बता दिया है, उहे कोई आपत्ति
नही । ! तुमने मेरा हाथ दबाते हुए कहा ।
परस्पर सबंध वन!य॑ रखने के लिए क्सी बधन म॑ बधना आवश्यक है
कया ? हम दो मित्रो को तरह रहत हुए भी ता जीवन भर वा साथ विभा
सकते है। ”
तुम्हारी भाँखें अचरज से कौोडियो की तरह फैल गयी, “तुम यह क्या
कह रही हो नीरू, कही तुम मजाक तो नही कर रही २”
/मजाब' नही ठीक ही कह रही हैं * अनजाने ही मैं भीतर स सख्त होने
चसगी थी, “हमारा सबंध तो गयाजल की तरह पवित्र है, फिर इस पर कोई
मुहर लगान की जरूरत क्यो २!
नही नीट माई लव, एसा न कहो, ऐसा न कहो प्लीज ” तुमने मेरा
हाथ बोर जोर से पकड लिया, “मैं तुम्हार बिना नही रह सक्गा 1”
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