पाँच उपन्यासिकाएं पाँच लेखिकाएँ | Panch Upanyasikayan Panch Lekhikayan

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Panch Upanyasikayan Panch Lekhikayan by उषा किरण खान - Usha Kiran khan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्श्‌ दिलासा >ेते | फिर भी माँ के विपय मे तुम्हें कुछ बताने बा साहम मैं नहीं जुटा पायी । माँ की मृत्यु थे विषय में भी मैंने तुम्हें वुछ नही बताया 1 मेरी मन स्थिति से अनभिन्न तुम उन दिनो अत्यधिव उत्साह मथे। तुम्हारी नौकरी लग गयी थी । जब भी आत, आँखो में सुबहले भविष्य का सपना होता, “आज एक मकान दखा है नोरू, चलो तुम भी देख लो, यदि तुम्हे पसद हो तो आज ही एडवाँस दे द 1”? कभी कहते, ' जरा फ्योचिर माट तक चलो न पलेंग और सोफ़ा सेट के लिए ऑडर द दू ।” तुम्हारा उत्साह मुझे शब्दवेधी वाण की तरह वेघ जाता | काश, तुम्हारी तरह मैं भी त्िद्वद्व हा कर भविध्य के सपने देख पाती 1 माँ का कहा अक्षरश सत्य लगने लगा, एक बार उहोने बहा था, “भविष्य तो भुलावा है । वतत- मान में जीने वो आदत डालो, क्योकि आने वाली हर बल बतमान बन कर ही अपना होता है। भविष्य पर कसी का वश नही ।/ पर माँ की तरह मैं निद्द्व नही हो पायी । तुम्हार उत्साह का मैं स्वागत नही कर सकी | “मैंने मा को तुम्हारे विषय मे सब कुछ बता दिया है, उहे कोई आपत्ति नही । ! तुमने मेरा हाथ दबाते हुए कहा । परस्पर सबंध वन!य॑ रखने के लिए क्सी बधन म॑ बधना आवश्यक है कया ? हम दो मित्रो को तरह रहत हुए भी ता जीवन भर वा साथ विभा सकते है। ” तुम्हारी भाँखें अचरज से कौोडियो की तरह फैल गयी, “तुम यह क्या कह रही हो नीरू, कही तुम मजाक तो नही कर रही २” /मजाब' नही ठीक ही कह रही हैं * अनजाने ही मैं भीतर स सख्त होने चसगी थी, “हमारा सबंध तो गयाजल की तरह पवित्र है, फिर इस पर कोई मुहर लगान की जरूरत क्यो २! नही नीट माई लव, एसा न कहो, ऐसा न कहो प्लीज ” तुमने मेरा हाथ बोर जोर से पकड लिया, “मैं तुम्हार बिना नही रह सक्गा 1”




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