युग - यूगे क्रान्ति | Yug - Yuge Kranti

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Yug - Yuge Kranti by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुगे-युगे त्रान्ति फत्याणसिह : रामकली : फल्याणसिह : २५ लाला सुगनचन्द को जानती है ? क्यों न जानूंगी। वही रामपुर याते । बेचारों की वेटी पर ऐसी विपता पड्टी कि भगवान ने करे किसी पर पड़े । लड़की ऐसी है जैसे साक्षात्‌ देवी बाग रूप। जैसा रूप वेंसा ही स्वभाव । बोलती है तो मोतो मरते हैं। मजाल है कभी फिसी की ओर भांस उठाकर देख से । लेकिन राम ने उसपर कंगा जुल्म किया। हाथ की मेहंदी सूसने भी न पाई थी कि मांग वा सिंदूर पुंछ गया । (दीघ नि:इवास लेकर) जो भाग्य में लिसा है, वह क्या मिट सकता है ? लेकिन प्यारे की मां, सभमुच उस दिन तो मैं भी रो पड़ा। हाय-हाय, वेचारी फूल-सी बच्ची ! विधाता ने उसे मसल- कर रस दिया। बेचारी विधवा हो गई, (क्षणिवः प्रवकाश ) ले किन जो होना या सो हो सया। भव तो सारी जिन्दगी उसको सती बनकर जीना है। शास्त्र या विधान ही ऐसा है। विधवा पर की देवी है, पूजनीय है, लेकिन (स्वर में तलसी ) कसा जमाना भा गया है। कुछ सिरफिरे लोग कहते हैं कि विधवा का विवाह होना चाहिए। पापी, लम्पट, शास्त्र बी बात सांघना साहते




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