अथर्ववेद संहिता भाषा - भाष्य भाग - 2 | Atharvaved Sanhita Bhasha - Bhashy Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
806
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २३ )
. बलिदान करनेवालों का ढकोंसछा सायण ने वेद मन्त्र से मिकाल हीं
दिया कि यज्ञ सें भारा जाने वारा पहु देवों के अजुग्रह् से देव-
यान मार्गों से सीधा स्वर्ग को जाता है। यदि इसी प्रकार पश्ुओं को देव
यान मार्गों से स्वयं और मोक्ष मिलने रूगा तो संसार भर के सब पश्ुओों
का संहार करके क्यों न स्वर्ग का द्वारा खोल दिया जाय। फिर तियंग
थोनियों के लिये द्वार ख़ुलते ही मनुष्य योनि क्यों तपस्था में समय थापन
करे । चार्वाक बृहस्पति ने तो ठोक ही कहा थां---
पशुश्रोनिहतः स्व ज्योतिष्टोमे गमिष्यति ।
स्वपिता यजमानेन तत्र करमान्न हिंस्यते ॥
यदिज्योतिश्टोमादि यज्ञ में मारा गया पश्षु स्वर्ग जा सकता है तो यजमान
अपने बाप को सार कर क्यों नहीं स्वयं पहुँचाता। सायण की बुद्ध को
इन ढकौसलों के आगे इतना भी कहने का साहस नहीं रहा कि वह उपनि-
यदू में बतलाये देवयान मार्गों को वेद में देख कर मोक्ष मार्ग का वर्णन
चेद में देखता ।
साथण के पीछे कदम रखनेवाले योरोपीयन पण्डितों ने भी कौशिकोक्त
चशाशमन को पिनियोग देख कर अपने अथों का झुफाव पशुब्रलिपरक
ही किया है ।
” थद्दाँ लक इमने संक्षेप से एक सृक्त के पह्मनलिपर क किये वेद मन्त्राथो
की विवेचना की है । इनका वास्तविक अर्थ भाष्य में देखने का पाठक
गण कष्ट करेंगे ।
(२ ) अथर्व० का० ५। सू० १२ [की उत्थानिका में पं० धॉकरपाग्डु
रंग ने इस सूक्त से वशाशमन कर्म में उसकी वा अर्थात् चर्बी के चार
भाग करके एक भाग कौ इस सूक्त से होमने को लिखा है । इसी प्रकार
(५२७ ) सूक्त से द्वितीय भाग को और दोनों से तीसरे भाग को और
*अनुमतये स्वाहा! से चोथे भाग को होमने को छिखा है । इन सूक्तों पर
सायण का भाष्य उपलब्ध नहों होता। और न इनमें कहों वशाशमन
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