न्यायसिद्धान्तमुक्तावली | Nyay Siddhant Muktavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
453
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मगछाचरणम् ] प्रत्यक्षखण्डम् रे
(६ मुक्तावली को ) भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर अपण किया है ( पहनाया है )
यह ग्रन्थ विद्वानों के चित्त को सदा प्रसन्न करता रहे। मुक्तावली ग्रन्थ की
मुक्तावली ( मोतियो की माला ) से उपमा दे रहे है। इस ग्रन्थ में नो द्रव्य,
चौबीस गुण, उत्क्षेपणादि पाँच कम, सामान्य विशेष, समवाय तथा प्रागभाव
आदि अभाव कहे गये हैं। मुक्तामाला ( मोतियों की माला ) भी द्रव्यसाध्या
( द्रव्य होने से मिलती है ), गुणो से (सूत्र से ) ग्रथित ( गुम्फित ) रहती है,
उस माला को धारण करनेवाले ( पहननेवाले ) के भाग्य और सत्कम
को सूचित करती है, सुन्दर जाति के मोतियों की वह (माला) होती है, महत्त्व-
निमल्रत्व (बडे छोटे व डजले दाने) आदि से निरन्तर युक्त रहती है, और तेज के
अभाव ( अ धकार ) में दीपक के समान पदार्थों को प्रकाशित करती है ॥ ३ ॥
( कारिकावलो )
मद्भलाचरणम्
#0 नूतनजलधररुचये.. गोपवर्धूटीदुकूलचौराय ।
तस्मै कृष्णाय नमः संसारमहीरुहर्य बीजाय ॥ १ ॥
अन्वय --नृतनजलरूधररुचये गोपवधूटीदुकूलचौराय ससारमहीरुहस्य बीजाय
तस्मे कृष्णाय नम ।
७ नूतनजलूधररुचये ०--नूतनश्लासों जलधरो मेघो नूतनजलधर , नृतनजल-
धरस्य रुचिरिव रुचिरयस्थ स नूतनजलधररुचि तस्मे। जिस प्रकार सजल मेच
वृष्टि प्रदान कर जनसमूह को प्रसन्न कर देता है, उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण
'भी अपने भक्तजनों की अभिछाषा को पूण कर उन्हें आनन्द प्रदान करें।
(१) गोपवधूटीदुकूछचौराय४--गा पान्तीति गोपा , ग्रोपाना वधूठन-,
गोपवधूटीना दुकूलानि ग्रोपवधूटीदुकूलानि, चोरयति य स चौर , ग्रोपवधूटी-
दुकूलाना चोर , तस्मे गोपवधूटीहुकूछचौराय । गौओ का पालन करनेवाले ग्वालो
की स्त्रियों के वस्त्रो को चुरानेवाक्े भंगवान् श्रीकृष्ण ने जिस प्रकार
१-- यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्। यत्तपस्यसि कौन्तेय
तत्कुरुष्व सदपणम्?? इस गीतावचन के अनुसार मुक्तावछी के तुल्य अपने रचित
अ्रथ को भागवदवषण किया गया है |
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