गद्य - भारती | Gadya Bhaaratii

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Gadya Bhaaratii by ओमप्रकाश - Om Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बड़े भाई साहब १६ ईहवर का उससे बढ़कर सच्चा भवृत कोई है ही नहीं । अन्त में यह हुआ कि स्वर्ग से नरक में ढकेल दिया गया | शाहे रूम ने भी एक बार अहंकार किया था। भीख माँग-मॉग कर मर गया। तुमने अभी केवल एक दर्जा पास किया है, और अभी से तुम्हारा सिर फिर गया, तब तो तुम आगे बढ़ चुके । यह समझ लो क्रि ब्ुम अपनी मेहनत से नहीं पास हुए, अन्धे के हाथ बटेर लग गई। मगर बटेर केवल एक बार हाथ लग सकती है, बार-बार नही लग सकती । कभी-कभी गुल्ली-डण्डे में भी अन्धा-चोट निशाना पड़ जाता है। इससे कोई सफल खिलाड़ी नहीं हो जाता। सफल खिलाड़ी वह है जिसका कोई निशाना खाली न जाय । मेरे फेल होने पर मत जाओ | मेरे दर्जे में आओगे, तो दाँतो पसीना आयेगा, जब अलजबरा ओर जॉमेद्री के लोहे के चने चबाने पड़े गे, और इंग- लिस्तान का इतिहास पढना पड़ेगा | बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं । आठ-आठ हेनरी हो गुजरे हैं। कौनसा काण्ड किस हेनरी के समय में हुआ, क्‍या यह याद कर लेना आसान समभते हो ? हेनरी सातवें की जगह हेनरी आठवाँ लिखा और सब नम्बर गायब ! सफाचट ! सिफर भी न मिलेगा, सिफर भी ! हो किस खपाल में ? दरजनों तो जेम्स हुए हैं, दरजनो विलियम, कोड़ियो चाल्से ! दिमाग चक्‍कर खाने लगता है। आँधी रोग हो जाता है । इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे । एक ही नाम के पीछे दोयम, सोयम, चहारम, पंचम लगाते चले गये । मुभसे पूछते तो दस लाख नाम बतला देता | जामेट्री तो बस खुदा की पनाह ! अब ज की जगह अजब लिख दिया तो सारे नम्बर कट गए। कोई इन निर्देयी मुमतहिनों से नहीं पूछता कि प्राखिर अब ज और अज ब में क्या फर्क है। और व्यर्थ' की बात के लिए क्यों छात्रों का खून करते हैं? दाल-भात-रोटी खाई या भात-दाल-रोटी खाई, इसमें क्या रखा है, मबर इन परीक्षकों को क्‍या परवाह वे तो वही देखते




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