भारतीय ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन-ग्रंथमाला | Bhartiya Gyanpeeth Murtidevi Jain - Granthmala

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आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय - Aadinath Neminath Upadhyay

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हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 एप० पुण्यरणोक्ता माता सूर्तिदेषीकी पत्चि स्व॒तिमें तत्सुपृत्न साहू शान्तिप्रसाद ५ स॑स्वापित मारतीय ज्ञामपीठ मूर्तिवेदी जेन-मन्धमाक्ता 3. संस्कृत प्रन्थाह १३1 ४9७.-२०.२७०४०७-७-५.२७.७-७.२०५. ७.७,८०..०३--२०७ ०-९.२७..२-७. ७३२७. २५, >७. ७५३५-२७.७०३५, इस प्रत्वमाश्ञात्ें प्राकृत संस्कृत पह्रपलंश हिन्दी, कम्लड तामिक्ष भ्रावि साक्षौण सावराह्मोंमें इपक्षण्थ झ्रागसिक दार्शनिक पौराशिक प्राहित्विक भौर पेतिशासिक लादि विबिज-विपवक दस प्रादित्वका अलुप्श्याभपृुथ सम्पाभन भौर शश्तका शक्ष और पवास्नस्मण अरजुद्दाद धादिके साथ ग्काझ्नथ होगा। बजैस प्राषडारीकोी सूचिर्षों शिक्षाक्षेख,संपरद, गिशिक् गिडाबॉके भभ्ययव ँ)्रथ भौर छोकह्विएकररो क्ैश-सादित्व भय भी इसौ प्रल्यमस्थातें प्रक्शत दोंगे। “४४०७४ “८४४“०८८४४०४६८४४८0४७६४४८७७८७९०४८८६९०८०&“६९“०७८-४७ “9& “२९८०४ ७# प्न्पमाक्ा सम्प्ररण डॉ इीराछ्णज्ञ जैन, + कर भयोष्यागसाद गोयक्षीय ण्स् ही हि मल्बी सारती ऋनपीठ' डॉ० आदिनाय नेमिनाद उपाध्याय, लि पक य. , दी किए, दर 27, सिर सर स्सटस्सकर रे दशापभाप्व फि्सस॑ २ अक्युभ हृप्ण ३ | सर्वोभिष्पर छरक्षित | बोरति रह ३८ फरवरी सत्‌ १३३३




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